मानवतावादी चिकित्सा: सुश्रुत से लेकर आज तक का सफर
“इंडियन जर्नल ऑफ फिजियोलॉजी एंड एलाइड साइंसेज” में प्रकाशित एक संपादकीय लेख में चिकित्सा के मानवतावादी पहलू पर प्रकाश डाला गया है। लेख के लेखक डॉ. भारती भंडारी, डॉ. प्रेणा अग्रवाल और डॉ. श्रीधर द्विवेदी ने इस संपादकीय में 2500 साल के चिकित्सा के इतिहास को परखा है और यह बताया है कि चिकित्सा का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा तब होता है जब वैज्ञानिक कौशल को सहानुभूति, जिज्ञासा और आत्म-देखभाल के साथ जोड़ा जाता है।
लेख में प्राचीन संस्कृत श्लोकों और हिप्पोक्रेट्स के आचारों को उद्धृत किया गया है, जिनमें कहा गया था कि चिकित्सा केवल शारीरिक इलाज तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक नैतिक कर्तव्य है। यह विचार सुश्रुत संहिता और चरक संहिता में भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, जहां शारीरिक, मानसिक और आत्मिक संतुलन की आवश्यकता को स्वीकार किया गया है। सुश्रुत ने लिखा था कि असंतुलन को ठीक करना चिकित्सक का कर्तव्य है, न कि केवल रोग को समाप्त करना।
वर्तमान समय में, यह संपादकीय यह दर्शाता है कि चिकित्सा में सहानुभूति की आवश्यकता कभी कम नहीं हुई, चाहे तकनीकी प्रगति कितनी भी हुई हो। COVID-19 महामारी ने यह साबित किया कि अगर चिकित्सकों का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य ठीक नहीं है, तो वे दूसरों का ठीक से इलाज नहीं कर सकते। लेख में यह भी बताया गया है कि चिकित्सकों को अपनी देखभाल के लिए समय निकालना चाहिए, ताकि वे अधिक कुशलता से रोगियों की सेवा कर सकें।
लेख में यह भी उल्लेख किया गया है कि चिकित्सा एक कला है, न कि केवल एक व्यापार, और इस कला को कभी भी एल्गोरिदम में न खोने की आवश्यकता है।
इस संपादकीय के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि चिकित्सा की दिशा में मानवतावाद और सहानुभूति हमेशा सर्वोपरि रहनी चाहिए।
