गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय कार्यशाला संपन्न, बौद्ध दर्शन और सामाजिक न्याय पर हुई गहन चर्चा
ग्रेटर नोएडा – गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के बौद्ध अध्ययन एवं सभ्यता विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला “सूत्त पिटक पाली में बौद्ध सामाजिक नैतिक दृष्टिकोण” का बुधवार को समापन हो गया। इस कार्यशाला में देशभर से आए प्रतिष्ठित विद्वानों ने भाग लिया और बौद्ध दर्शन, सामाजिक न्याय तथा समकालीन समाज में इसकी प्रासंगिकता पर विस्तार से चर्चा की।
बौद्ध धर्म, न्याय और वैश्विक प्रासंगिकता पर विचार-विमर्श
कार्यशाला के दूसरे दिन दो प्रमुख अकादमिक सत्र आयोजित किए गए।
प्रथम सत्र: “सूत्त पिटक पाली में बौद्ध सामाजिक दर्शन”
इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. प्रदीप घोकला (पुणे विश्वविद्यालय) ने की। उन्होंने डॉ. बी.आर. आंबेडकर के बौद्ध धर्म की ओर झुकाव और इसमें न्याय की अवधारणा पर चर्चा की। प्रो. एच.पी. गंगनेगी ने महायान दर्शन, तांत्रिक बौद्ध परंपरा और विभिन्न बौद्ध मतों की व्याख्या की। वहीं, प्रो. उमा चक्रवर्ती ने बौद्ध धर्म में महिलाओं की स्थिति पर महत्वपूर्ण विचार रखे।
द्वितीय सत्र: “बौद्ध धर्म की वैश्विक प्रासंगिकता एवं सामाजिक सरोकार”
इस सत्र में प्रो. स्वरूपा रानी (आचार्य नागार्जुन विश्वविद्यालय) ने दक्षिण और उत्तर भारत के उन बौद्ध नेताओं के योगदान को रेखांकित किया, जिन्हें अपेक्षित पहचान नहीं मिली। प्रो. एन. सुकुमार (दिल्ली विश्वविद्यालय) ने महात्मा गांधी और डॉ. आंबेडकर को बुद्ध की शिक्षाओं का अनुयायी बताते हुए उन्हें वैश्विक प्रेरणा स्रोत बताया। डॉ. प्रवीण कुमार (सुभारती विवेकानंद विश्वविद्यालय) ने महायान दर्शन की गूढ़ अवधारणाओं पर प्रकाश डाला, जबकि डॉ. चंद्र कीर्ति ने डॉ. आंबेडकर के विचारों की वर्तमान सामाजिक संदर्भ में प्रासंगिकता पर चर्चा की।
प्रधानमंत्री मोदी की बौद्ध विरासत के प्रति प्रतिबद्धता को रेखांकित किया गया
समापन सत्र में मुख्य अतिथि डॉ. अनिर्बान गांगुली (अध्यक्ष, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भारत और विश्व में भगवान बुद्ध की विरासत को संरक्षित करने के प्रयासों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि “पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा घोषित करना प्रधानमंत्री मोदी की भगवान बुद्ध की विरासत के प्रति गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।”
डॉ. गांगुली ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में नालंदा विश्वविद्यालय का पुनरुद्धार और तीसरी बार शपथ ग्रहण के 10 दिनों के भीतर इसका उद्घाटन एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के स्वप्न को साकार किया है और पाली भाषा को वैश्विक संवाद की एक महत्वपूर्ण भाषा के रूप में स्थापित किया है।
कार्यशाला का सफल समापन, विद्वानों को किया गया सम्मानित
समापन सत्र की अध्यक्षता प्रो. श्वेता आनंद ने की, जबकि डॉ. शिवसाई ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया। इस अवसर पर आयोजन समिति के सदस्यों को मुख्य अतिथि डॉ. गांगुली द्वारा सम्मानित किया गया। कार्यशाला में 100 से अधिक प्रतिभागियों ने सहभागिता की।
कार्यक्रम में प्रमुख रूप से उपस्थित शिक्षकों में डॉ. अरविंद, डॉ. पासवान, डॉ. मित्रा, डॉ. शाक्य, डॉ. मेश्राम, विक्रम, कन्हैया, संदीप और अजय शामिल रहे।
गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय में आयोजित इस कार्यशाला ने पाली भाषा और बौद्ध अध्ययन को बढ़ावा देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भविष्य में इस क्षेत्र में शोध और संवाद को और सशक्त करने की दिशा में कदम बढ़ाए।