योग और स्वास्थ्य : वीरासन, बता रहे हैं योगगुरु ऋषि वशिष्ठ
☀योग और स्वास्थ्य ☀
वीरासन :
वज्रासन में बैठ जाएँ।
दाहिने घुटने को ऊपर उठायें और दाहिने पंजे को बाएँ घुटने के भीतरी भाग के पास जमीन पर रखें।
दाहिनी कोहनी को दाहिने घुटने पर रखें और ठुड्डी को दाहिने हाथ की हथेली पर रखें। बायीं हथेली को बायें घुटने पर रखें।
आँखों को बन्द कर विश्राम करें।
शरीर को पूर्णतः गतिहीन तथा मेरुदण्ड एवं सिर को सीधा रखें।
कुछ देर रुकें, फिर आसन बदल कर घुटनों को विश्राम दें। बायें पंजे को दाहिने घुटने की बगल में रखकर इसकी पुनरावृत्ति करें।
श्वसन-
यह कल्पना करते हुए धीमा और गहरा श्वसन करें कि श्वास के साथ ऊर्जा भ्रूमध्य से अन्दर और बाहर आ-जा रही है।
अवधि-
कम-से-कम दो मिनट तक अभ्यास करें। बाएँ घुटने पर बायीं कोहनी रख कर दूसरी ओर से इसकी पुनरावृत्ति करें।
सजगता-
शारीरिक-सिर और मेरुदण्ड को सीधा रखने, संतुलन तथा श्वास पर।
आध्यात्मिक-
आज्ञा चक्र पर।
लाभ-
यह आसन मन को संतुलित बनाता, एकाग्रता की क्षमता में वृद्धि करता, अचेतन क्षेत्रों की सजगता को बढ़ाता और शीघ्रतापूर्वक शारीरिक एवं मानसिक विश्रान्ति प्रदान करता है। चिन्तन प्रक्रिया अधिक स्पष्ट और सूक्ष्म होती है। यह उन लोगों के लिए उपयोगी है, जो बहुत अधिक चिन्तनशील हैं या जिनके विचार विक्षिप्त एवं अनियन्त्रित रहते हैं। यह गुर्दों, यकृत, प्रजनन एवं आमाशयी अंगों के लिए उत्तम आसन है।
☀ऋषि वशिष्ठ ☀
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