योग और स्वास्थ्य, सिंह – गर्जनासन: बता रहे हैं योग गुरु ऋषि वशिष्ठ
योग और स्वास्थ्य, सिंह – गर्जनासन
सिंहासन में बैठें। आँखें खोलें और शाम्भवी मुद्रा का अभ्यास करते हुए दृष्टि को भ्रूमध्य पर एकाग्र करें। पूरे शरीर को शिथिल करें।
मुँह बन्द रखें। नाक से धीरे-धीरे गहरी श्वास अन्दर लें।
श्वास भर कर मुँह खोलें और जीभ को बाहर निकालकर, जितना सम्भव
हो ठुड्डी की ओर ताने।
धीरे-धीरे श्वास छोड़ते हुए, मुँह को पूरा खुला रख कर गले से स्पष्ट, स्थिर “आSSS” की ध्वनि उत्पन्न करें। अधिक जोर न लगायें।
पूरी तरह श्वास छोड़ने के बाद मुँह बन्द करें और श्वास लें।
यह एक चक्र हुआ।
श्वसन-
नाक से धीरे-धीरे श्वास लें और उसके बाद मुँह से “आSSS” की ध्वनि उत्पन्न करते हुए धीरे-धीरे श्वास छोड़ें।
अवधि-
सामान्य स्वास्थ्य के लिए प्रतिदिन 5 से 10 चक्र अभ्यास करें।
आँखों, जीभ और मुँह को प्रत्येक चक्र के बाद कुछ क्षणों के लिए विश्राम प्रदान कर सकते हैं। यह आसन किसी भी समय किया जा सकता है।
सजगता-
शारीरिक-छाती के फैलने तथा आँखों और जिह्वा में उत्पन्न संवेदनाओं पर, श्वास लेते समय श्वास पर। श्वास छोड़ते समय गले से उत्पन्न ध्वनि और उस क्षेत्र पर पड़ने वाले प्रभाव पर तथा मन के हल्का होने पर।
आध्यात्मिक-
विशुद्धि या आज्ञा चक्र पर।
लाभ-
यह गले, नाक, कान, नेत्र एवं मुँह के रोगों को दूर करने के लिए एक उत्तम आसन है, विशेष रूप से जब इसे उगते हुए सूर्य की आरोग्यप्रदायक किरणों के सामने किया जाये। इससे निराशा तथा भावनात्मक तनाव दूर होता है। वक्ष एवं मध्य-पट के तनाव भी दूर होते हैं। सिंह गर्जनासन उन लोगों के लिए विशेष लाभप्रद है जो तुतलाते, हकलाते अथवा घबराते हैं या अन्तर्मुखी हैं। इससे स्वस्थ एवं मधुर स्वर का विकास होता है। अन्य लाभ शाम्भवी मुद्रा के समान ही हैं।
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