योग और स्वास्थ्य, सिंहासन: बता रहे हैं योगगुरु ऋषि वशिष्ठ
योग और स्वास्थ्य सिंहासन:
वज्रासन में बैठ जाएँ। घुटनों के बीच लगभग 45 सेन्टीमीटर की दूरी रखें।
दोनों पैरों की उँगलियाँ आपस में एक-दूसरे का स्पर्श करती हुई रहें। आगे की ओर झुकें और दोनों हथेलियों को घुटनों के बीच में जमीन पर इस प्रकार रखें कि उँगलियाँ शरीर की ओर रहें।
भुजाओं को पूरी तरह सीधा कर लें और पीठ को मोड़कर धनुषाकार बनाएँ।
सीधी भुजाओं पर शरीर को टिका दें।
सिर को पीछे की ओर झुकायें ताकि गर्दन में आरामदायक तनाव उत्पन्न हो। आँखें बन्द कर लें और शाम्भवी मुद्रा करते हुए आन्तरिक दृष्टि को भ्रूमध्य पर केन्द्रित करें।
आँखें खुली भी रख सकते हैं। ऐसी स्थिति में अपनी दृष्टि को छत के किसी बिन्दु पर केन्द्रित करें।
मुँह बन्द रहना चाहिए। सम्पूर्ण शरीर और मन को विश्रान्त बनाएँ।
लाभ-
इस स्थिति में निश्चित रूप से मेरुदण्ड का विस्तार होता है और शरीर पूर्णतः जड़ हो जाता है। इसमें पूर्ण काया-स्थैर्य प्राप्त होता है।
टिप्पणी- सामान्यतः सिंहासन को गर्जना करते सिंह की भंगिमा से जोड़ा जाता है, किन्तु उपनिषदों में इसे सिंहासन के प्रकारान्तर के रूप में दिया गया है। इस ध्यानासन में सिंह शान्तिपूर्वक बैठा है और कुछ घटित होने की प्रतीक्षा में है। ध्यान की गहरी अवस्था में प्रवेश हेतु मन में यही भावना करनी है।
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