योग और स्वास्थ्य , उदराकर्षणासन:, बता रहे हैं योग गुरु ऋषि वशिष्ठ
क्रिया विधिः
उकहूँ बैठ जाएँ। पंजों के बीच थोड़ी दूरी रखते हुए, दोनों हाथों को घुटनों पर रखें।
गहरी श्वास लें।
दाहिने घुटने को बायें पंजे के पास जमीन पर लाएँ, और श्वास छोड़े।
बायें हाथ का उपयोग उत्तोलक की तरह करते हुए बायें घुटने को दाहिनी ओर दबायें, साथ-ही बायीं ओर मुड़ें।
दाहिने पंजे के भीतरी भाग को जमीन पर रखें।
दोनों जाँघों से उदर के निचले भाग को दबाने का प्रयत्न करें।
बायें कन्धे के ऊपर से देखें।
अन्तिम स्थिति में श्वास को 3 से 5 सैकण्ड तक बाहर रोकें।
प्रारम्भिक स्थिति में लौटते समय श्वास लें।
एक चक्र पूरा करने के लिए विपरीत दिशा में अभ्यास की पुनरावृत्ति करें।
5 से 110 चक्र अभ्यास करें।
सजगता :
गति के साथ तालमेल रखते हुए श्वास पर और उदर के निचले भाग के खिंचाव एवं दबाव पर।
सीमायें-
घुटनों अथवा सायटिका रोग से ग्रस्त रोगी के लिये यह अभ्यास वर्जित है।
लाभ-
यह आसन पैरों को ध्यान के आसनों में बैठने के लिए तैयार करता है, और पैरों में रक्त-संचार की वृद्धि करता है। यह कब्ज को भी दूर करता है।
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