महंगाई की मार से राहत नहीं! लगातार 11वीं बार रेपो रेट 6.5% पर कायम, आपकी EMI नहीं होगी सस्ती
नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) ने एक बार फिर आम लोगों को झटका देते हुए रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है। शुक्रवार को खत्म हुई तीन दिवसीय बैठक के बाद आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने घोषणा की कि रेपो रेट 6.5% पर बरकरार रहेगा। यह लगातार 11वीं बार है जब रेपो रेट को स्थिर रखा गया है।
रेपो रेट में बदलाव का फैसला
आरबीआई की छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति ने 4-2 के बहुमत से रेपो रेट को स्थिर रखने का निर्णय लिया। गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा, “हम आर्थिक स्थिरता और वृद्धि को ध्यान में रखते हुए अपने मौद्रिक रुख को तटस्थ बनाए रखेंगे। कीमतों की स्थिरता समाज के हर वर्ग के लिए आवश्यक है।”
महंगाई और वृद्धि दर पर क्या बोले गवर्नर?
आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष की आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को 7.2% से घटाकर 6.6% कर दिया है। वहीं, खुदरा मुद्रास्फीति का अनुमान बढ़ाकर 4.8% कर दिया गया है। शक्तिकांत दास ने कहा कि खाद्य पदार्थों की कीमतों में दबाव की वजह से तीसरी तिमाही में महंगाई ऊंची रह सकती है, लेकिन रबी फसल से स्थिति में सुधार की उम्मीद है।
रेपो रेट स्थिर रहने का क्या मतलब है?
रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस पर वाणिज्यिक बैंक केंद्रीय बैंक से कर्ज लेते हैं। रेपो रेट में बदलाव न होने का मतलब है कि होम लोन, ऑटो लोन और अन्य कर्जों की EMI फिलहाल सस्ती नहीं होगी। यह फैसला आरबीआई की महंगाई पर नियंत्रण रखने की रणनीति का हिस्सा है।
आर्थिक चुनौतियों के बीच फैसला
बढ़ती मुद्रास्फीति और वैश्विक आर्थिक चुनौतियों के बीच आरबीआई ने यह फैसला लिया है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि रेपो रेट स्थिर रखने से आर्थिक विकास को संतुलित बनाए रखने में मदद मिलेगी।
बाजार पर असर
इस फैसले के बाद शेयर बाजार में भी हलचल देखी गई। सेंसेक्स और निफ्टी ने धीमी शुरुआत की। दूसरी तिमाही की सुस्ती के संकेत अब समाप्त होने की ओर हैं, लेकिन महंगाई अभी भी चुनौती बनी हुई है।
क्या आपकी EMI कम होगी?
रेपो रेट स्थिर रहने का सीधा असर यह है कि मौजूदा होम लोन और अन्य कर्जों की EMI में किसी तरह की राहत की उम्मीद नहीं है। नए लोन की ब्याज दरें भी फिलहाल स्थिर रहेंगी।
RBI की अगली मॉनेटरी पॉलिसी बैठक में क्या बदलाव होगा, यह देखने वाली बात होगी। लेकिन तब तक आम जनता को महंगाई और कर्ज की ऊंची दरों का बोझ उठाना होगा।