सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: यमुना एक्सप्रेसवे के भूमि अधिग्रहण पर मुहर, प्राधिकरण को मिली बड़ी जीत
गौतमबुद्ध नगर में यमुना एक्सप्रेसवे और आसपास के क्षेत्रों के विकास के लिए भूमि अधिग्रहण पर वर्षों से चल रहे विवाद को सुप्रीम कोर्ट ने समाप्त करते हुए प्राधिकरण को बड़ी राहत दी है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने भूमि अधिग्रहण को वैध ठहराते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के विरोधाभासी निर्णयों को खारिज कर दिया।
भूमि अधिग्रहण को बताया सार्वजनिक हित का हिस्सा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यमुना एक्सप्रेसवे का निर्माण और उसके आसपास के क्षेत्रों का विकास एकीकृत सार्वजनिक-हित परियोजना का अभिन्न हिस्सा है। कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 की धारा 17(1) और 17(4) के तहत किए गए तत्काल प्रावधानों को भी उचित ठहराया।
मुआवजा विवाद का समाधान
अधिकांश प्रभावित किसानों द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा निर्धारित 64.7% अतिरिक्त मुआवजे को स्वीकारने की बात को ध्यान में रखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने इसे बरकरार रखा और मुआवजे में किसी भी अतिरिक्त वृद्धि से इनकार कर दिया। यह सुनिश्चित किया गया कि सभी पक्षों को समान लाभ मिले।
तीन महत्वपूर्ण प्रश्नों पर विचार
1. क्या भूमि अधिग्रहण विकास योजना का हिस्सा है?
कोर्ट ने कहा कि यह अधिग्रहण यमुना एक्सप्रेसवे के विकास और उससे जुड़े भूमि विकास का हिस्सा है।
2. क्या धारा 17(1) और 17(4) का प्रयोग उचित था?
सुप्रीम कोर्ट ने इसे कानूनी और न्यायसंगत ठहराया।
3. इलाहाबाद हाईकोर्ट के किस निर्णय को सही माना जाए?
कोर्ट ने कमल शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले को सही ठहराते हुए श्योराज सिंह बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के निर्णय को खारिज कर दिया।
इस फैसले से न केवल यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (YEIDA) को राहत मिली है, बल्कि इससे क्षेत्रीय विकास परियोजनाओं को भी गति मिलेगी।