योग और स्वास्थ्य : योग-मुद्रा, बता रहे हैं योग गुरु ऋषि वशिष्ठ
☀योग और स्वास्थ्य ☀
☀ योग-मुद्रा ☀
योग-मुद्रा (परिभाषा): शरीर की पीच उँगुलियां पंच तत्वों का प्रतिनिधित्व करती है।
अंगुष्ठ – अग्नि तत्त्व का
तर्जनी अंगुली – वायु तत्त्व का
मध्यमा अंगुली – आकाश तत्त्व का
अनामिका – पृथ्वी तत्त्व का
कनिष्ठा – जल तत्व का प्रतिनिधित्व करती है।
किन्हीं दो या दो से अधिक तत्वों (उंगुलियों) के मिलाने पर बनी आकृतियों को मुद्रा कहते हैं।
मुद्रा विज्ञान एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है, जिस में हाथों की उँगलियों व अँगूठे के उपयोग के द्वारा ही चिकित्सा का लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
हमारा शरीर पंच तत्वों से मिलकर बना है। ये पाँच तत्व पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि एवं आकाश है। इन तत्वों का संतुलन जब तक बना रहता है. तब तक व्यक्ति स्वस्थ रहता है। संतुलन बिगड़ने से अस्वस्थ हो जाता है। विभिन्न मुद्राओं के प्रयोग द्वारा इन पाँच तत्वों को संतुलित कर के अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त किया जा सकता है।
☀ ज्ञान-मुद्रा ☀
स्थिति –
किसी भी ध्यान के आसन में बैठें।
विधि –
1- किसी ध्यान के आसन में बैठकर हाथों की तर्जनी उंगली के अग्रभाग को अँगूठे के अग्र भाग से मिलाएँ तथा शेष उँगलियाँ सीधा रखें।
2 – हथेलियां ऊपर की ओर करते हुए कलाई को घुटने पर रख कर शांत बैठें। यह लगभग 15 से 45 मिनट तक करें।
लाभ –
1 – अंगूठा व तर्जनी के मिलाने से वायुतत्व में वृद्धि होती है। इस से नकारात्मक विचार दूर होता है।
2 – बुद्धि का विकास होता है।
3 – मन की एकाग्रता बढ़ती है। क्रोध शांत होता है और ध्यान की स्थिति अच्छी होती है।
4 – स्मरण शक्ति का विकास होता है।
5 – मानसिक शक्ति का विकास होता है।
6 – बेचैनी, चिड़चिड़ापन, पागलपन, उन्माद क्रोध, मानसिक अवसाद, मिर्गी आदि रोगों में लाभदायक है।
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