योग और स्वास्थ्य में जानिए, प्राणायाम के बारे में, बता रहे हैं योग गुरु ऋषि वशिष्ठ
☀योग और स्वास्थ्य ☀
☀प्राणायाम☀
प्राण का अर्थ –
‘प्राण’ का अर्थ ऊर्जा अथवा जीवनी शक्ति है तथा ‘आयाम’ का तात्पर्य ऊर्जा को नियंत्रित करना है। इस अर्थ में प्राणायाम का तात्पर्य एक ऐसी क्रिया से है, जिस के द्वारा प्राण का विस्तार व प्रसार किया जाता है तथा उसे नियंत्रण में भी रखा जाता है।
नाड़ी शोधन प्राणायाम :
किसी भी सुख आसन में बैठें। पीठ, कमर, गर्दन, सिर लंबवत् सीधा रखें। घुटने भूमि पर टिके रहें।
प्रथम चरण में बायाँ हाथ बाएँ घुटने पर रखें। दाहिने हाथ की तर्जनी और मध्यमा भू-मध्य पर रखें। अँगूठे से दाहिना तथा अनामिका से आवश्यकता अनुसार बाई नासिका रंध्र बंद करें। बाई नासिका से पूरक करें तथा पुनः उसी से रेचक करें, दाहिना स्वर बंद रहेगा। इस प्रकार इसे पाँच बार करें। पुनः ऐसा ही दाईं नासिका रंध से करें। बाई नासिका बंद रखें। एक नासिका रंध से एक बार श्वास लेने और छोड़ने को एक चक्र कहा जाता है।
द्वितीय चरण में दाई नासिका रंध को अंगूठे से बंद करें, बाई से पूरक करें। अब बाईं नासिका रेचक रंध को चौथी अंगुली से बंदकर दाईं से रेचक करें। पुनः दाई से पूरक कर बाई से रेचक करें। यह एक चक्र पूरा हुआ। इसको भी पांच बार करें।
लाभ :
1 – नाड़ी-शोधन प्राणायाम से मन शांत और प्रसन्न रहता है।
2 – साधक आनंद और सुरक्षा का अनुभव करता है।
3 -इड़ा और पिंगला नाड़ियों में प्राण का प्रवाह समान होता है तथा इस से विषाक्त तत्व विलग होते हैं।
4 -नाड़ियों की शुद्धि होती हैं। तथा शरीर आगे योगाभ्यास के लिए तैयार होता है।
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