देव प्रबोधिनी एकादशी : पौराणिक कथा और महत्व बता रहे हैं गुरु ऋषि वशिष्ठ

☀देव प्रबोधिनी एकादशी : पौराणिक कथा और महत्व: ☀

कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी देवोत्थान, तुलसी विवाह एवं भीष्म पंचक एकादशी के रूप में मनाई जाती है। दीपावली के बाद आने वाली इस एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं।

देवोत्थान एकादशी-

आषाढ़ शुक्ल एकादशी की तिथि को देवशयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन उठते हैं इसलिए इसे देवोत्थान (देवउठनी) एकादशी भी कहते हैं। कहा जाता है कि भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को 4 माह के लिए क्षीरसागर में शयन करते हैं। 4 महीने पश्चात वे कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। विष्णुजी के शयनकाल के 4 माह में विवाह आदि अनेक मांगलिक कार्यों का आयोजन निषेध है। हरि के जागने के पश्चात यानी भगवान विष्णु के जागने बाद ही सभी मांगलिक कार्य शुरू किए जाते हैं।

पौराणिक कथा-
एक बार भगवान विष्णु से उनकी प्रिया लक्ष्मीजी ने आग्रह के भाव में कहा- हे भगवान! अब आप दिन-रात जागते हैं, लेकिन एक बार सोते हैं तो फिर लाखों-करोड़ों वर्षों के लिए सो जाते हैं तथा उस समय समस्त चराचर का नाश भी कर डालते हैं इसलिए आप नियम से विश्राम किया कीजिए। आपके ऐसा करने से मुझे भी कुछ समय आराम का मिलेगा।
लक्ष्मीजी की बात भगवान को उचित लगी। उन्होंने कहा कि तुम ठीक कहती हो। मेरे जागने से सभी देवों और खासकर तुम्हें कष्ट होता है। तुम्हें मेरी सेवा से वक्त नहीं मिलता इसलिए आज से मैं हर वर्ष 4 मास वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा।
मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलयकालीन महानिद्रा कहलाएगी।
यह मेरी अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी रहेगी। इस दौरान जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे, मैं उनके घर तुम्हारे समेत निवास करूंगा।

तुलसी विवाह :

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को तुलसी पूजन का उत्सव पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है। कहा जाता है कि कार्तिक मास में जो मनुष्य तुलसी का विवाह भगवान से करते हैं, उनके पिछले जन्मों के सब पाप नष्ट हो जाते हैं।

कार्तिक मास में स्नान करने वाली स्त्रियां कार्तिक शुक्ल एकादशी को शालिग्राम और तुलसी का विवाह रचाती हैं। समस्त विधि-विधानपूर्वक गाजे-बाजे के साथ एक सुंदर मंडप के नीचे यह कार्य संपन्न होता है। विवाह के समय स्त्रियां गीत तथा भजन गाती हैं।

मगन भई तुलसी राम गुन गाइके, मगन भई तुलसी।
सब कोऊ चली डोली पालकी रथ जुड़वाये के।।
साधु चले पांय पैया, चींटी सो बचाई के।
मगन भई तुलसी राम गुन गाइके।।

दरअसल, तुलसी को विष्णुप्रिया भी कहते हैं। तुलसी विवाह के लिए कार्तिक शुक्ल की नवमी ठीक तिथि है। नवमी, दशमी व एकादशी को व्रत एवं पूजन कर अगले दिन तुलसी का पौधा किसी ब्राह्मण को देना शुभ होता है। लेकिन लोग एकादशी से पूर्णिमा तक तुलसी पूजन करके 5वें दिन तुलसी का विवाह करते हैं। तुलसी विवाह की यही पद्धति बहुत प्रचलित है।

शास्त्रों में कहा गया है कि जिन दंपतियों के संतान नहीं होती, वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त करें।

☀ऋषि वशिष्ठ ☀
☀ विशेषज्ञ ☀
☀योग एवम ज्योतिष☀
☀सम्पर्क सूत्र – 9259257034 ☀

यह भी देखे:-

अल्फा वन  शिवमहापुराण कथा:  पूरे जगत में सभी स्त्री हैं, मात्र नारायण ही हैं पुरुष :  आचार्य शिवकुम...
एलडेको ग्रीन मीडोज़ सोसायटी में धूमधाम से मनाया गया रामोत्सव
आज का पंचांग, 2 नवंबर 2020 , जानिए शुभ एवं अशुभ मुहूर्त 
संकट मोचन महायज्ञ के  38 वें दिन की आहुति पूर्ण हुई, 24 जुलाई को होगी पूर्णाहुति 
कल का पंचांग, 23 नवंबर 2021, जानिए शुभ एवं अशुभ मुहूर्त 
आज का पंचांग, 16 अगस्त, जानिए शुभ एवं अशुभ मुहूर्त
आज का पंचांग, 7 नवंबर 2020, जानिए शुभ व अशुभ मुहूर्त
कल का पंचांग, 5 दिसंबर 2023, जानिए शुभ एवं अशुभ मुहुर्त
श्री धार्मिक रामलीला का मंचन 15 अक्टूबर से, 24 सिंतबर को होगा भूमि पूजन
गलगोटिया विश्वविद्यालय में संत रविदास जयंती पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन
आज का पंचांग, 11 जनवरी 2021, जानिए शुभ एवं अशुभ मुहूर्त
भगवान भोलेनाथ अमरनाथ जी का आवाहन करते हुए संकट मोचन महायज्ञ श्री बालाजी महाराज को समर्पित किया
आज का पंचांग, 14 सिंतबर 2020, जानिए शुभ एवं अशुभ मुहूर्त
कल का पंचांग, 10 जनवरी 2023, जानिए शुभ एवं अशुभ मुहूर्त
देखें VIDEO, आर्षायण ट्रस्ट ने मनाया मकर संक्रांति उत्सव , 15 कुण्डीय यज्ञ में लोगों ने दी आहुति
17 नवंबर से शुरू छठ महापर्व पर नोएडा प्राधिकरण से छठ घाटों पर व्यवस्था करने की मांग