योग और स्वास्थ्य: कटि-शक्ति-विकासक, बता रहे हैं योग गुरु ऋषि वशिष्ठ
☀ योग और स्वास्थ्य ☀
कटि-शक्ति-विकासक क्रिया नं. 4 भाग (क)
स्थिति :
(अ) समावस्था में खड़े रहें।
विधि-
दोनों हाथों को कंधों के बाजू से जमीन से समानांतर फैलाएं, हथेली जमीन की ओर रखें अंगुलियों को सटाएँ.
श्वास को अंदर भस्ते हुए बाएँ 30 अंश के कोण पर झुकाएँ। दाहिने हाथ को 150 कोण ऊपर तानें, इस प्रकार दोनों हाथों को एक रेखा में रखें, साथ-साथ गर्दन कमर को भी झुकाएँ, श्वास को बाहर निकालते
हुए पूर्व स्थिति में आ जाएँ घुनः श्वास खींचते हुए गर्दन कमर के साथ दाहिने हाथ को 30 अंश के कोण पर नीचे की ओर झुकाएँ और बाएँ हाथ को 150 पर ऊपर तानें। दोनों हाथों को एक रेखा में रखें, श्वास छोड़कर पूर्व स्थिति में जाएँ, यह क्रिया 10 बार करें।
क्रिया नं. 4 भाग (ख)
स्थिति : (ख)
दोनों पैरों में एक हाथ का अंतर रखकर सीधे खड़े हो जाएँ।
विधि-
भाग ‘क’ के समान क्रिया को 10 बार पूरा करें।
लाभ-
1. इन क्रियाओं के अभ्यास से कमर सुंदर सुडौल और पतली होती है तथा लचीली बनती है।
2. कमर के दर्द मिटते हैं, कमर पुष्ट होने में उपयोगी है।
3. शरीर कांतियुक्त और फुर्तीला बनता है।
4. उम्र के प्रथम 20 वर्ष तक साधक की लंबाई बढ़ती है।
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