राष्ट्रचिंतना में विकसित भारत@2047 में हमारी भूमिका पर हुई गोष्ठी, गोपाल कृष्ण अग्रवाल रहे मुख्य वक्ता
ग्रेटरनोएडा: रविवार को प्रबुद्ध नागरिकों के मंच राष्ट्रचिंतना की 15वीं गोष्ठी का आयोजन कैलाश चिकित्सालय के सभागार में “विकसित भारत@2047 में हमारी भूमिका” विषय पर आयोजित किया गया। इसमें मुख्य वक्ता के रूप में श्री गोपाल कृष्ण अग्रवाल, राष्ट्रीय प्रवक्ता ,भारतीय जनता पार्टी उपस्थित रहे ।
विषय परिचय करवाते हुए प्रोफेसर विवेक कुमार, हैड एमिटी प्रौद्योगिकी संस्थान ने कहा कि भारत के प्रधान सेवक माननीय मोदी जी ने संकल्प लिया है कि भारतवर्ष की स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूर्ण होने पर 2047 में भारतवर्ष विकसित राष्ट्र बने। यह दूरदर्शी महत्वाकांक्षी लक्ष्य तीव्र गामी विकास का परिचायक बने। संभव है इससे हम 2047 से पहले ही विकसित राष्ट्र हो जाएं। सकल घरेलू उत्पादन सूचकांक तथा विकास दर के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण नवाचार तथा प्रौद्योगिकी सभी के सुख का कारण बने यह भी एक महत्वपूर्ण विषय है।
श्री गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने अपने संबोधन में कहा कि बाल्यकाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में एक सुभाषित बोलते थे जिसका सार था, विचार विमर्श से हम सार्थक परिणाम तक पहुंच जाते हैं। उन्होंने कहा कि विकसित भारत एक यात्रा है। पिछले हजार वर्ष की स्वतंत्रता से पूर्व हम विश्व में सकल घरेलू उत्पाद में 25 से 28% योगदान करते थे, जबकि 1947 में स्वतंत्रता के समय दो प्रतिशत से भी कम योगदान के साथ शिक्षा, गरीबी, कालरा जैसी महामारी तथा तथा हमारी विश्व भर में अनोखी सभ्यता संस्कृति से मुक्त उस समय की बड़ी समस्या थी। मुगलों और अंग्रेजों जैसे आताताइयों ने विदेशी सभ्यता को ही सर्वोपरि बना दिया।
2014 में भारत वर्ष पुनः एक बार स्वतंत्र हुआ। परतंत्रता के बहुत से संस्मरणों को तिलांजलि दे दी गई।
स्वतंत्रता के पश्चात प्रजातांत्रिक मूल्यों को अपनाया गया। इंग्लैंड के प्रधानमंत्री ने कहा था कि लोकतंत्र भारत में सफल नहीं हो सकेगा। जबकि अपनी संकल्प शक्ति के बल पर भारत आज भी प्रजातंत्र है, और अपने सांस्कृतिक मूल्यों के कारण है। भारतीय संविधान इसका संरक्षक है। जबकि एक दिन पूर्व स्वतंत्र हुआ पाकिस्तान इन मूल्यों का रक्षण एवं संरक्षण नहीं कर पाया।
2014 से पूर्व धर्मनिरपेक्षता सांस्कृतिक मूल्यों को ध्वस्त करने की साजिश के तौर पर अल्पसंख्यकों को संरक्षण तथा तुष्टीकरण के रूप में चरितार्थ हुई। जबकि आज की सरकार की पहल पश्चिमी कुठाराघात को हराकर आर्थिक संपन्नता, सांस्कृतिक धरोहर, मूल्य पर आधारित स्वाभिमान तथा आम जनता को आर्थिक वैभव में प्रतिभागी बनाना है।
उन्होंने कहा कि दक्षिण पश्चिम एशियाई देश तथा अफ्रीका के 48 देश भारत को अपना नेता मानते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ को पुनर्गठित करने के लिए प्रयासरत हैं। कोविड के समय में केवल ऑस्ट्रेलिया और भारत ने 190 देश से आग्रह किया की कोविड की दवाई को पेटेंटेड ना करवाया जाए तथा आवश्यकता अनुसार सभी देशों को विशेष कर अफ्रीका और एशिया के गरीब देशों को उपलब्ध करवाई जाए, और भारतवर्ष ने प्राथमिकता से इस कार्य को किया भी।
समस्याओं के निवारण में नई तकनीक जैसे कृत्रिम ज्ञान, ब्लाकचैन टेक्नोलॉजी, स्टार्टअप साइबर सिक्योरिटी के द्वारा भारतवर्ष एक आर्थिक वैश्विक शक्ति के रूप में उभर पा रहा है। सरकार की प्राथमिकता में आधारभूत ढांचा संरचना, व्यापार करने की सुलभता, सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों जैसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, बैंकों, पेट्रोलियम सेक्टर का पुनरुत्थान तथा प्राकृतिक ऊर्जा के स्रोत की संभावनाएं तथा उसके साथ-साथ वैश्विक धन आगमन के कारण भारतीय सांस्कृतिक विरासत जैसे योग भारतीय भोजन, संगीत, धार्मिक पर्यटन,स्वास्थ्य पर्यटन सुलभ हो पा रहे हैं।
800 वर्षों के पश्चात भारतवर्ष के कोटि-कोटि जनों के आराध्य श्री राममंदिर का अयोध्या में पुनर्स्थापना, काशी और उज्जैन में हमारी सभ्यता संस्कृति का संवर्धन सर्वस्पर्शी, सर्वदृष्टा है।
विगत दिनों विश्व आर्थिक मंच पर स्मृति ईरानी जी को अयोध्या में निवेश के लिए बहुत से आग्रह प्राप्त हुए।
उत्तर प्रदेश के उत्तम शासन के कारण कुंभ में 25 करोड़ श्रद्धालुओं ने शांतिपूर्वक स्नान ध्यान का सुख प्राप्त किया। G20 की बैठक चीन में जहां सिर्फ 12 स्थान पर आयोजित की थी, भारतवर्ष ने अपनी अध्यक्षता में 60 स्थान पर करके हर प्रांत से एक या दो स्थानों पर अपनी सभ्यता संस्कृति से एक लाख विदेशियों को परिचित करवाया।
आज की सरकार राष्ट्रीय प्राथमिकताओं का ध्यान रखते हुए रूस यूक्रेन की लड़ाई के समय भी दोनों देशों से तेल आयात करने में सक्षम है। युद्ध के मध्य में से न केवल अपने विद्यार्थियों को बल्कि विश्व के अनेक देशों के विद्यार्थियों को निकाल पाने का सामर्थ्य रखती है। ईरान का चाबहार बंदरगाह तथा श्रीलंका का हाईफा बंदरगाह संवेदनशील स्थानों पर भारतवर्ष की प्राथमिकताओं को प्रदर्शित करते हैं।
भविष्य में भी भारतवर्ष की महान सभ्यता संस्कृति का संवर्धन करते हुए स्वाभिमान के साथ उज्जवल भविष्य की ओर अग्रसर रहेंगे।
समाज की सज्जन शक्ति ने स्वतंत्रता के कारण तथा उससे बचने के उपाय, छोटे व्यापारियों को संरक्षण, साइबर सिक्योरिटी की आवश्यकता, मंदिर के साथ-साथ विश्वविद्यालय तथा चिकित्सालय आदि की उपयोगिता, प्रदूषण से रोकथाम, नागरिक समाज की स्थापना, जनसंख्या नियंत्रण की अति शीघ्र रोकथाम की प्राथमिकता को अवगत करवाते हुए, इन विषयों को सरकार के संज्ञान में लाने का आग्रह किया।
प्रोफेसर बलवंत सिंह राजपूत, अध्यक्ष राष्ट्रचिंतना ने कहा के विकसित भारत में जनसंख्या असंतुलन ना हो अन्यथा विकसित भारत की अवधारणा विद्रूप ही साबित होगी । जनसंख्या नियंत्रण के लिए हम केवल परमात्मा की कृपा या प्रकृति के प्रकोप पर ही आश्रित ना रहें। संकल्प से ही सिद्धि संभव होगी। जनसंख्या नियंत्रण के प्रस्ताव पर पूर्व में भी प्रधान जन सेवक तथा उनके कार्यालय को अवगत करवाया गया था।
उन्होंने कहा कि इन सब समस्याओं से समाज को जागृत करने के लिए शिक्षकों की महिती भूमिका रहेगी। भारतवर्ष का आर्थिक विकास बौद्धिक क्षमता व मानव संसाधनों के बल पर होगा आजादी से पूर्व गुरुदेव रघुवीर रविंद्र नाथ टैगोर, चंद्रशेखर, रमन को नोबेल पुरस्कार मिले लेकिन क्या कारण है कि आज कल की शिक्षा व्यवस्था मौलिक बौद्धिक चिंतन को प्राथमिकता नहीं देती।
इसीलिए उन्होंने कहा कि मौलिक बौद्धिक चिंतन को बढ़ावा मिले शिक्षा नीति को लागू करने में कठिनाई अवश्य है लेकिन संकल्प की कमी ना रहे, नेतृत्व क्षमता राष्ट्र समर्पित हो। किसी भी स्तर पर कोई भी सज्जन अगर इसमें बाधा उत्पन्न करता हो तो वह अपना स्थान छोड़ दे नव नेतृत्व को मार्ग प्रदान करें।
प्रोफेसर राजपूत, डॉ सतीश गर्ग और नरेश गुप्ता ने मुख्य वक्ता को योगेश्वर श्री कृष्ण की मूर्तरूप स्मृति चिन्ह, भारतीय पंचांग प्रदान कर सम्मानित किया।
अंत में सभी उपस्थित बंधु भगिनी ने राष्ट्रगान किया। गोष्ठी में राजेंद्र सोनी, डॉ नीरज कौशिक, प्रो आर एन शुक्ला, डॉ उमेश कुमार, प्रो सतीश चन्द्र गर्ग, बिजेंद्र, अश्विनी, अरविंद साहू, इंद्रजीत, श्रीनिवास, डॉ हरमोहन, भोला ठाकुर, प्रमोद मिश्रा, डॉ संदीप कुमार, आर के शर्मा, राजेश बिहारी, संगीता वर्मा, दीवान सिंह, मुकेश कुमार शर्मा, डॉ पी के तोमर, गुड्डी तोमर, संजीव शर्मा, अशोक राघव, जूली शर्मा, धर्म पाल भाटिया, डॉ रूप चंद शर्मा, विवेक द्विवेदी, प्रो राजेंद्र पुरवार, मनोज मधु, माया कर्ण, डॉ निधि माहेश्वरी, राशि पाठक, आचार्य शिव किशोर, रोहित प्रियदर्शन, डॉ. पंकज पथानिया, डॉ. राजीव किशोर पांडेय, कांति पाल, मीनाक्षी माहेश्वरी, रविन्द्र पाल सिंह, विजय भाटी, नीरज जिंदल, दिव्या अग्रवाल, महेंद्र प्रताप उपाध्याय, ब्रिजमोहन शर्मा, गोविन्द सिंह नेगी, ऐ के सिंह, डॉ पदम सिंह तोमर, विनोद पाल, मनोरंजन कुमार, राजीव रंजन, डॉ अंबिका प्रसाद पांडेय, यतेंद्र यादव, सत्य प्रकाश गोयल, मुकेश शर्मा आदि कार्यकर्ता उपस्थित थे।