बाराही मेले में बनी चौपाल पर ग्रामीण जनजीवन पर आधारित चीजों की दिखाई दे रही है, झलक
कृषि प्रधान भारत की आत्मा गांवों में ही बसती है। प्राचीनकाल से ही मनुष्य की आजीविका कृषि और पशुपालन पर निर्भर रही है। कंप्यूटरीकरण के इस दौर में अब ग्रामीण संस्कृति एक तरह से लुप्त होती जा रही है। घर में हर दिन काम आने वाली चीजें भी सांस्कृतिक धरोहर के रूप में देखी जानी शुरू हो गई हैं। हुक्का, दही मथने वाली रई, पीढा, ईंढी, चारा काटने वाली मशीन, हाथ वाली आटा चक्की और बैलगाडी अब इतिहास की धरोहर बन गई हैं। शिव मंदिर सेवा समिति के अध्यक्ष धर्मपाल भाटी ने बताया कि बाराही मेले में ग्रामीण संस्कृति की इन चीजों का विशेष ख्याल रखा गया है। यहां एक चौपाल बनी हुई है। इस बाराही बैठक पर इन सब चीजों के दर्शन आसानी से किए जा सकते हैं। शिव मंदिर सेवा समिति के महासचिव ओमवीर बैंसला ने बताया कि बाराही चौपाल पर सबसे बडी खाट है, जिसकी लंबाई करीब 12 गुणा 6 फीट है। सबसे बडा हुक्का जिसकी उंचाई करीब 5 फीट है। सबसे बडा पीढा है जिसकी लंबाई और चौडाई 2 गुणा 2 है। इसी प्रकार विश्व की सबसे बडी रई है, जिसकी उंचाई करीब 8 फीट और चौडाई 2 फीट है। इसके साथ ही चारा काटने की मशीन,चक्की, कुठला, राया और बैलगाडी भी हैं। शिव मंदिर मेला समिति के कोषाध्यक्ष व मीडिया प्रभारी मूलचंद शर्मा ने बताया कि कंप्यूटरीकरण के दौर में ये ग्रामीण जनजीवन पर आधारित चीजें अब लुप्त होनी शुरू हो गई हैं। नई पीढी के बच्चों से इन चीजों के बारे में पूछा जाए तो बता नही पाएंगे? ग्रामीण जनजीवन पर आधारित इन चीजों की झलक दिखाने के लिए चौपाल का निमार्ण कराया था। वर्ष 2001 मेंं जब शिव मंदिर मेला समिति आसित्व में आई थी, उसी समय से यह चौपाल शुरू हुई थी। हर बाराही मेले में इन चीजों को प्रदर्शन के लिए रखा जाता है, ताकि लोगों को अपनी धरोहर और संस्कृति का भान होता रहे।