हमारे जीवन की यात्रा बगैर किसी उद्देश्य के शुरू होती है : आचार्य प्रशांत
ग्रेटर नोएडा। प्रशांत अद्वैत फाउंडेशन के संस्थापक एवम पूर्व सिविल सेवा अधिकारी आचार्य प्रशांत ने कहा है कि जिसने भी अपने जीवन मे गीता को उतार लिया उसके भीतर के सभी विकार,अंधविश्वास, भय, भ्रम स्वतः समाप्त हो जाएंगे।
नॉलेज पार्क स्थित केसीसी कॉलेज में आयोजित दो दिवसीय संत सरिता सम्मेलन में आचार्य प्रशांत ने कहा कि हमारे जीवन की यात्रा बगैर किसी उद्देश्य के शुरू होती है तथा बिना कोई लक्ष्य प्राप्त किये समाप्त हो जाती है हम यह जानते ही नही की हमे क्या पाना है ? पहले जानो की तुम कौन हो तुम्हे क्या चाहिए तभी कुछ हांसिल कर सकते हो। उन्होंने कहा कि जैसे हम भीतर से होते हैं वैसा ही हमारा संसार हो जाता है, पर हम खुद को बदलते ही नही क्योंकि खुद को बदलने के लिए चुनौती उठानी पड़ती है उसके लिए हम तैयार ही नही होते।
आचार्य प्रशांत ने कहा हमारा जीवन बेचैनी में ही बीत रहा है जब तक हम नींद में होते हैं तब तक दुःख का अनुभव नही होता लेकिन जैसे ही उठते हैं दुख का अनुभव होने लगता है तरह तरह के काल्पनिक विचार उठने लगते हैं यह होता ही इसीलिए है कि हम बेहोशी की जिंदगी जीते हैं ,अगर होश में रहकर सही लक्ष्य के साथ आगे बढ़ेंगे तो भय, चिंता,असुरक्षा, भ्रम, काल्पनिक विचार उठने स्वतः समाप्त हो जाएंगे तथा मुक्ति की और जाने का रास्ता खुल जायेगा।
उन्होंने कहा कि अध्यात्म जिंदगी को करीब लाने की प्रक्रिया है जिसने भी गीता को जीवन मे उतार लिया वह बन्धनों से मुक्त हो गया। खोजने के लिए तो ब्रह्मांड में अनेकों विषय हैं सभी विषयों को तो खोज नही सकते हैं हमारे पास सीमित समय है इसीलिए हम अधूरी कामनाओं में ही मर जाते हैं हम बाहर को खोजने निकल पड़ते हैं जबकि जो चाहिए वह हमारे भीतर मौजूद हैं यह हमें बताया ही नही जाता, हम आत्मनिरीक्षण भी नही करते कि हमे चाहिए क्या है ? इसीलिए हमारे ऋषि मुनि व संत बता कर गए हैं कि धर्म अंधविश्वास को हटाने की प्रक्रिया है जो धार्मिक नही है वह अंधविश्वासी ही होगा यह निश्चित है। उन्होंने कहा कि हम कुछ पाने के लिए बेचैन रहते हैं जबकि हमे कैसे पता जिस वस्तु को पाने के लिए हम बेचैन हैं वह हमारे लिए उपयोगी ही साबित होगी? हम आत्मज्ञान के अभाव में अहंकार के चलते स्वंय ही यह तय कर लेते हैं की हम कह रहे हैं तो वह ठीक ही होगी। पहले जानो फिर उसको प्राप्त करो यही ज्ञान है। गीता में भी भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया था उसमे भी यही कहा था कि पहले जानो फिर धर्म क्या है अधर्म क्या है फिर धर्म की खातिर चाहे प्राण भी चले जायें पीछे नही हटना है यही जीवन का उद्देश्य होना चाहिए।
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