भोर के अर्घ्य के साथ ही सम्पन्न हुआ सूर्य उपासना का छठ महापर्व
विश्व कल्याण की कामना के साथ ही चार दिवसीय छठ महापर्व का समापन हो गया। व्रती महिलाओं और पुरुषों ने उदयगामी सूर्य को अर्घ्य देते हुए प्रणाम किया। 36 घंटे निर्जला इस कठिन पर्व को बिहार एवं पूर्वांचल के जिलों में बड़ी ही आस्था के साथ मनाया जाता है। बिहार और पूर्वांचल के लोग देश के किसी भी कोने में रहते हो, वो इस छठ का पर्व जरूर मनाते हैं।
गीत और ठेकुआ
जैसे ही छठ महापर्व शुरू होता है, छठ मैया के गीत कानों में सुनाई देने लगते हैं। नहाय खाय और खरना के महाप्रसाद के ग्रहण करने के बाद व्रती पुरूष और महिलाएं डूबते सूर्य को नदियों, सरोवरों में खड़े होकर अर्घ्य देती हैं। फलों के प्रसाद के साथ ठेकुआ का भी काफी महत्व होता है।
छठ गीतों की धुन एक अलग ही आस्था में सराबोर होती है। गीतों को सुनते ही एक नई ऊर्जा का संचार होता है। व्रत के दौरान ये गीत ही व्रतियों को अपने संकल्प से बांधे रखते हैं।
दरअसल, सम्पूर्ण प्रकृति को समर्पित यह व्रत हजारों सालों से होता आ रहा है। इस व्रत में विभिन्न प्रकार के फल, अनाज, जल, सूर्य उन सभी की आराधना की जाती है, जिनके बिना जीवन असंभव है। पूरे विश्व में जहां उगते सूर्य को ही प्रणाम किया जाता है, वहीं इस व्रत में ढलते सूर्य को भी प्रणाम कर अर्घ्य देने की परंपरा है।
यह व्रत सन्देश देता है कि प्रकृति ही मानव जीवन का केंद्र बिंदु है। इसी के साथ हमें अपनी प्रकृति और उसके द्वारा दिये गए संसाधनों की रक्षा और संरक्षण भी करना हमारा परम् कर्तव्य है। यह व्रत सन्देश देता है कि जिस तरह से हम प्रभात का स्वागत करते हैं, उसी प्रकार हमें संध्या को भी धन्यवाद करना चाहिए। यही प्रकृति का नियम है और इसे सम्पूर्ण मानव जाति को अपनाना भी चाहिए।
यह व्रत जहां स्त्रियां करती हैं वहीं पुरूष भी इस व्रत को करते हैं। आस्था और संयम का यह महापर्व ऊर्जा और जीवन में सदा उत्साह बनाए रखने की प्रेरणा देता है।