फर्जी कंपनी बनाने का मामला , 3 और गिरफ्तार: बोगस बिल बनाना था काम, जीएसटी रिफंड के जरिए बड़ी रकम का फर्जी वाड़ा
फर्जी तरीके से कंपनियों का रजिस्ट्रेशन कराकर 15 हजार करोड़ रुपए के फर्जीवाड़े के मामले में 3 और जालसाजों को गिरफ्तार किया है। इनके कब्जे से फर्जी टैक्स इनवाइस दस्तावेज, 6 जीएसटी फर्म के ऑनलाइन दस्तावेज, 03 मोबाइल फोन, डीएल, पैन कार्ड, 02 आधार कार्ड, दो लग्जरी कार जिसमें एक महिंद्रा एक्सयूवी 700 और स्कोडा रैपिड व 42 हजार रुपए नकद बरामद किए गए है।
एसीपी रजनीश वर्मा ने बताया कि इनकी पहचान अतुल गुप्ता पुत्र विमल गुप्ता, सुमित गर्ग उर्फ चाचा पुत्र मोहनलाल गर्ग,मनन सिंगल पुत्र संत कुमार सिंघल हुई है। गोपनीय सूचना के आधार पर इनको डीएनडी होते हुए ग्रेटर नोएडा की तरफ एक्सप्रेस वे की तरफ जाते हुए कनेक्टेड रोड से गिरफ्तार किया गया है । इनका काम फर्जी बिल जनरेट करना था। इस मामले में अब तक महिला समेत 15 लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है।
पूछताछ के दौरान आरोपियों ने कई अन्य कंपनी और कार्यालय के बारे में पुलिस को जानकारी दी है। वहीं फरार आरोपियों की तलाश में पुलिस अलग-अलग राज्यों में दबिश दे रही है। फर्जीवाड़े में शामिल आरोपियों की संख्या 50 तक पहुंचने की आशंका जाहिर की जा रही है।
ये है मामला
नोएडा कमिश्नरेट पुलिस ने 1 जून को 2660 फर्जी कंपनी बना जीएसटी में रजिस्ट्रेशन कराकर 15 हजार करोड़ से अधिक का फ्रॉड करने वाले एक अंतरराज्यीय रैकेट का खुलासा किया था। इन जालसाज़ ने पिछले पांच साल से फर्जी फर्म बनाकर जीएसटी रिफंड आईटीसी (इनपुट टैक्स क्रेडिट) प्राप्त कर सरकार को हजारों करोड़ का चूना लगाया था। पुलिस ने इस गिरोह में शामिल महिला समेत आठ जालसाज़ को गिरफ्तार कर लिया था। मामले में नोएडा पुलिस के साथ राज्य व केंद्र की जीएसटी टीम भी जांच कर रही है।
ऐसे किया फर्जीवाड़ा
अपर आयुक्त ग्रेड-2 (विशेष अनुसंधान शाखा) राज्यकर नोएडा राजाराम गुप्ता ने बताया कि जीएसटी में इनपुट टैक्स क्रेडिट के रूप में ऐसी व्यवस्था बनाई गई है, जिसमें पहले भुगतान किए गए जीएसटी के बदले में आपको क्रेडिट मिल जाते हैं। ये क्रेडिट आपके जीएसटी अकाउंट में दर्ज हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि फर्जी कंपनियों के द्वारा वास्तविक माल का आदान प्रदान नहीं किया जाता है।
बल्कि जाली बिल पर करोड़ों रुपए का लेनदेन दिखाया जाता है। सभी बिल फर्जी होते हैं। कंपनियां एक दूसरे से फर्जी तरीके से इनपुट टैक्स क्रेडिट का आदान प्रदान करती हैं। व्यापार दिखाने वाली अंतिम फर्म सरकार से इनपुट टैक्स क्रेडिट रिफंड का दावा कर देती है। रिफंड के तौर पर कंपनी के खाते में सरकार रुपया जमा कर देती है। इसमें कोई व्यापार नहीं हुआ जबकि सरकार से करोड़ों रुपए इनपुट टैक्स क्रेडिट के बदले लेकर कंपनी चूना लगाती है।