जीबीयू में फसल पौधों की जेनेटिक इंजीनियरिंग पर राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्घाटन

पादप आनुवंशिकीविदों और जैव प्रौद्योगिकीविदों का प्राथमिक ध्यान भविष्य की जरूरतों के लिए हमारे फसल पौधों को डिजाइन करना है। इस उद्देश्य के लिए, पारंपरिक आनुवंशिकी दृष्टिकोण के साथ पौधों की विविधता का उपयोग पिछले दशकों में शुरू किया गया है। वर्तमान समय में, ‘कृषि सफलता’ की चुनौतियों का समाधान करना अधिक प्रासंगिक हो गया है, जब  फसल पौधों की जेनेटिक इंजीनियरिंग प्रौद्योगिकियां योग्य कृषि के लिए व्यापक अवसर प्रदान कर रही हैं।
 
फसल सुधार में जेनेटिक इंजीनियरिंग की भूमिका को स्वीकार करते हुए जैव प्रौद्योगिकी स्कूल, गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय 19-23 दिसंबर 2022 को “इन विट्रो रिजनरेशन एंड जेनेटिक ट्रांसफॉर्मेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स” पर एक राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन कर रहा है।  उद्घाटन समारोह के प्रारंभ में कार्यशाला के समन्वयकों में से एक डॉ. भूपेंद्र चौधरी ने खाद्य भुखमरी से लड़ने के लिए रोग प्रतिरोधी बौने गेहूं और चावल की किस्मों के प्रजनन के लिए ‘हरित क्रांति’ के क्रियान्वयन में डॉ. नॉर्मन बौरलॉग के योगदान को रेखांकित किया। उन्होंने 2050 में खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने के लिए आधुनिक फसल पौधों की जेनेटिक इंजीनियरिंग के लिए पादप विज्ञान के छात्रों और संकाय सदस्यों को प्रशिक्षित करने हेतु ऐसी कार्यशालाओं की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया।
 
इस कार्यशाला के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रोफेसर आर.के. सिन्हा ने सामाजिक सुधार में मौलिक अनुसंधान और इसके अनुप्रयोगों के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने अपने भौतिकी अनुसंधान और इसके अनुप्रयोगों में से एक जैविक अनुप्रयोगों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने स्कूल के संकाय सदस्यों, स्कूल के लिए बाह्य अनुदान प्राप्त करने की उनकी क्षमता और अनुसंधान के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की सराहना की। कुलपति ने जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान में महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी विचार-विमर्श किया और हमारी अनुसंधान शक्तियों और समाज की जरूरतों और आवश्यकताओं को कैसे समन्वित किया जाए, इस पर एक रोडमैप तैयार किया।
 
उद्घाटन समारोह में डॉ. नागेंद्र सिंह, विभागाध्यक्ष, जैव प्रौद्योगिकी  विभाग ने मुख्य वक्ता आईआईटी-मद्रास के प्रोफेसर डी. वेलमुरुगन का परिचय दिया और प्रोटीन संरचना ऐवम उनके कार्यात्मक वर्णन के क्षेत्र में उनके अकादमिक क्रेडेंशियल और शोध योगदान पर प्रकाश डाला। प्रोफेसर  वेलमुरुगन ने प्रोटीन संरचना और क्रिस्टलोग्राफी की मूल बातो पर एक मुख्य व्याख्यान दिया और प्रोटीन संरचनाओं के वर्णन में नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर एन. रामचंद्रन के योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने जिंजर से नए फाइटो-घटकों की पहचान पर अपने शोध और उनकी कैंसर के उपचार और वायरल रोग प्रबंधन में भूमिका पर भी प्रकाश डाला। सत्र में प्रतिष्ठित गणमान्य व्यक्तियों में प्रो. एन.पी. मलकानिया डीन एकेडमिक्स ऐवम डीन स्कूल ऑफ बायोटेक्नोलॉजी, डॉ. नागेंद्र सिंह विभागाध्यक्ष, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, बायोटेक्नोलॉजी विभाग के संकाय सदस्य डॉ. विक्रांत नैन, डॉ. दीपाली सिंह, डॉ. रेखा पुरिया, डॉ. जय मुयाल, डॉ. शक्ति साही, डॉ. बरखा सिंघल, डॉ. तशफीन अशरफ, डॉ. भास्वती बनर्जी, डॉ. नवीन कुमार और कार्यशाला समन्वयक डॉ. भूपेंद्र चौधरी और डॉ. गुंजन गर्ग शामिल रहे। प्रो. मलकानिया ने पादप आनुवंशिक संसाधनों और भावी पीढ़ियों के लिए उनके सतत उपयोग के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने भारत की आधुनिक कृषि विकास नीति को तैयार करने में प्रो. स्वामीनाथन और प्रो. सुब्रमण्यम के भारतीय हरित क्रांति में सक्रिय योगदान को भी याद किया।
 
उद्घाटन सत्र में फसल पौधों की बायोटेक्नोलॉजी अनुसंधान में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों की ओर भी सभी का ध्यान आकर्षित किया और प्लांट टिशू कल्चर और जेनेटिक इंजीनियरिंग पर प्रयोगशाला प्रशिक्षण पर जोर दिया गया। इससे पादप विज्ञान के विद्वानों और वैज्ञानिकों को भावी पीढ़ियों के लिए खाद्य सुरक्षा लाने में मदद मिलेगी। समारोह के अंत में, डॉ गुंजन गर्ग ने सभी गणमान्य व्यक्तियों और कार्यशाला प्रतिभागियों को धन्यवाद प्रस्ताव दिया। पांच दिनों तक चलने वाली इस कार्यशाला में देश के विभिन्न राज्यों के कई डिग्री छात्र, शोधार्थी और संकाय सदस्य भाग ले रहे हैं। यह वर्कशॉप प्रतिभागियों को प्लांट सेल कल्चर और जेनेटिक इंजीनियरिंग की तकनीकों के बारे में शिक्षित करेगी।

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