कृष्ण के बिना जीत नही सकते: आचार्य प्रशान्त

ग्रेटर नोएडा। अर्जुन की मनोव्यथा और कृष्ण का बोध जानना है, तो श्रीमद्भगवद्गीता के पास आना ही होगा। कृष्ण के ये शब्द अर्जुन के लिए हैं जो रण क्षेत्र में दुविधाओं से स्वयं को घिरा हुआ पाता है। एक तरफ़ अर्जुन के सामने धर्म है वहीं दूसरी तरफ़ उसके नाथ, रिश्तेदार, गुरुजनों का मोह है।

बोधस्थल में आयोजित सत्र को संबोधित करते हुए प्रख्यात लेखक,विचारक,वेदान्त मर्मज्ञ एवम पूर्व सिविल सेवा अधिकारी आचार्य प्रशान्त ने कहा कि कुरुक्षेत्र के मैदान में श्रीमद्भगवद्गीता का जन्म हुआ। अर्जुन युद्धभूमि में बेबस सा खड़ा है कि वह युद्ध करे कि न करे और कृष्ण उसे ज्ञान दे रहे हैं। कृष्ण के समक्ष एक ऐसा हठी शिष्य है जो सुनने को राज़ी नहीं है क्योंकि उसका मन भी किसी आम संसारी की तरह डर, संशय, लोभ और मोह से भरा हुआ है। उन्होंने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता के अठारह अध्याय कृष्ण द्वारा हठी अर्जुन को मानने का प्रयास है।

आचार्य प्रशान्त ने कहा कि हमारी स्थिति भी अर्जुन से कुछ अलग नहीं है। हमारे सामने भी चुनौतियाँ जब आती हैं तो सोते से हमें झकझोर देती हैं। अगर ठीक समय पर हमें कृष्ण का साथ न मिले तो इस कुरुक्षेत्र में जीत असंभव है। श्रीमद्भगवद्गीता के प्रकाश में अपने जीवन को एक नई दिशा दीजिए, श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान कोई शब्दिक चर्चा या सैद्धांतिक ज्ञान नहीं बल्कि रणक्षेत्र में खड़े एक योद्धा के लिए कहे गए शब्द हैं।

उन्होंने कहा कि भगवद्गीता का जन्म किसी शान्त, मनोरम जंगल में नहीं, बल्कि कुरुक्षेत्र के मैदान में हुआ था। अर्जुन के सामने एक तरफ धर्म था तो दूसरी तरफ नात-रिश्तेदार और गुरुजनों का मोह। बड़ा कठिन था अर्जुन के लिए निर्णय लेना।

उन्होंने कहा कि अर्जुन कोई जीवन से विरक्त शिष्य नहीं था, जो संसार का मोह त्यागकर कृष्ण के पास आया हो। वह युद्ध के मैदान में खड़ा था। उसे निर्णय करना था कि युद्ध करे कि ना करे।

अर्जुन ने धर्म नहीं बल्कि मोह और स्वार्थ चुना था। कृष्ण के समक्ष एक ऐसा हठी शिष्य था जो सुनने को राज़ी नहीं था क्योंकि अर्जुन का भी मन एक साधारण मन ही था, अपनों पर बाण चलाना उसके लिए आसान नहीं था। श्रीमद्भगवद्गीता के अट्ठारह अध्याय कृष्ण द्वारा हठी अर्जुन को मनाने का प्रयास हैं।

हमारी भी स्थिति अर्जुन से अलग नहीं है। हमारे भी जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जहाँ निर्णय लेना आसान नहीं होता। यदि हमें कृष्ण का साथ नहीं मिला तो जीवन के कुरुक्षेत्र में हम हार ही जाएँगे क्योंकि कृष्ण के बिना जीत अंसभव है।

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