World Post Day 2021: भारत में डाक सेवाओं का इतिहास, सबसे पुराना टेलीग्राम
नई दिल्ली । 14वीं सदी में मुहम्मद बिन तुगलक के राज में दिल्ली आए ‘इब्नबतूता ने लिखा है कि, ‘हिंदुस्तान में दो तरह से पत्र भेजे जाते थे या तो घोड़ों के जरिए या फिर पैदल। हर चार मील पर सुल्तान के घुड़सवार दस्ते तैनात रहते थे जबकि पैदल हरकारों के लिए हर तीन मील पर चौकियां होती थीं और हर मील पर एक हरकारा जो दौड़ते वक्त एक हाथ में सारे पत्र और दूसरे में एक कोड़ा हिलाता रहता था, जिसके ऊपर छोटी घंटियां लगी रहती थीं। कलकत्ता (अब कोलकाता) का जनरल पोस्ट आफिस 1868 में बना था, अंग्रेजों ने दिल्ली को राजधानी बनाकर तवज्जो देनी शुरू की, कलकत्ता (अब कोलकाता)और शिमला के बाद। शिमला में 1883 में डाकघर खुल गया था, दिल्ली में 1885 में खुला, कश्मीरी गेट से लाल किले के रास्ते में बना ये दो मंजिला डाकघर अभी भी काम करता है।
अगस्त 1947 में दिल्ली में 104 डाकघर थे, 19 ग्रामीण इलाकों में थे। 1961 तक दिल्ली के केवल 81 डाकघरों में ही पब्लिक काल की सुविधा उपलब्ध थी। आधुनिक डाक सेवाओं का केंद्र बनने से पहले अंग्रेजों की राजधानी होने के नाते कलकत्ता (अब कोलकाता) और शिमला ही केंद्र थे। दिल्ली को अपना सर्किल और डायरेक्टर आफ पोस्टल सर्विसेज, जिसके अधीन पूरी दिल्ली की डाक सेवाएं कर दी गईं जबकि टेलीफोन और टेलीग्राफ को अलग विभाग के अधीन कर दिया गया।
सबसे पुराना टेलीग्राम
तारीख थी 11 मई, 1857 का, जिसमें मेरठ से आए सिपाहियों के आने की सूचना के अलावा ये भी था कि कैसे वो यूरोपियंस को मारकर उनके बंगले जला रहे हैं। लाहौर के ज्यूडिशल कमिश्नर मोंटगोमरी ने कहा था, ‘इलेक्टिक टेलीग्राफ ने भारत को बचा लिया’, दरअसल वो भारत की नहीं भारत में अपनी सत्ता की बात कर रहा था।