कोरोना अभी गया नही है पड़ सकता है अपनों को खोना , बरतें सावधानी
वाराणसी, राजेश मिश्रा | अभी बीते अप्रैल मई की ही बात है जब भारत मे कोरोना महामारी ने अपना ऐसा विकराल रूप दिखाया जिसके कारण न जाने कितने बच्चे अपनी माँ से , कितने अपने पिता से और कुछ तो ऐसे बच्चे भी है जिनसे उनके माँ बाप दोनों का साया उनके सर से उठ गया है। इस त्रासदी मे सिर्फ़ बच्चे ही नही अकेले हुए कई ऐसे माता पिता भी है जिनसे उनके बच्चों का साथ इस कोरोना ने छीन लिया है। अब 4 महीने बाद ऐसा लग रहा है कि अब हमारे आस पास सब ठीक है, अब हमें कोरोना ऐसे नही मारेगा जैसे अप्रैल मई मे जान का दुश्मन बन गया था।
आपको याद होगा जनवरी फ़रवरी मे भी देश मे ऐसे ही सब कुछ सामान्य हो चला था। ऐसा लग रहा था कि कोरोना अब न आने वाला है और न ही अब इससे डरने की कोई ज़रूरत है। न तो लोगों को मास्क लगाने का ध्यान रहा और न ही हाथ धोने का और सोशल दूरी तो भूल ही जाइए। इसमें आम लोगों का भी क्या दोष है जब देश के जिम्मेदार व्यक्ति और जिनकी एक आवाज पर पूरा देश थाली और ताली और न जाने क्या क्या टोटके करने को तैयार हो जाता है ऐसे नेता लोग अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए रैली पे रैली कर रहे हो तो आम जनता से कोरोना प्रोटोकॉल की बात करना बेईमानी ही होगी।
लेकिन ये जीवन हमारा है और हमें इसकी जरूरत है , हमें हमारे अपनों की ज़रूरत है और अपनों को हमारी ज़रूरत है। हम सबको यह ध्यान देना होगा कि कोरोना जैसी बीमारी अभी जड़ से ख़त्म नही हुई है यह फ़िर एक बार वार करेगी न तो ये आपको अपना वक़्त बतायेगी और न ही तरीका। इसलिए हमें जो जो भी सावधानी बताई गई है उनका हमें पालन करना होगा और दूसरों से भी करवाने की कोशिश करनी होगी।
इस लेख को लिखते समय मेरे हाथ कांप रहे है और शायद आपकी आँखे इस लेख को पढ़ते पढ़ते डबडबा जाएं क्योंकि अब जो मैं आपको बताने जा रहा हूँ वो किसी और पे नही ख़ुद मेरे पर बीती है। मैं राजेश मिश्रा हूँ ,मेरी उम्र 29 साल है और मैं grenonews. com के साथ काम कर रहा हूँ। अभी पिछले ही साल 1 नवंबर को मेरे घर मे मेरे जीवन की सबसे बड़ी ख़ुशी होती है मुझे संतान प्राप्ति होती है और 29 अप्रैल को मेरी पत्नी, मेरी सबसे अच्छी दोस्त
रिशु कोरोना ( साँस लेने मे दिक्कत ) से पीड़ित होने के कारण अपने 6 महीने के दुधमुँहे बच्चे, मुझे और अपने पीछे अपनी माँ, सास ससुर अपने देवर और दो बहन एक भाई को छोड़ के स्वर्ग सिधार गयी। ये बातें जितनी पढ़ने मे मुश्किल है उससे कई गुणी है लिखने मे। अब इस दुनिया मे वो नही है हर कोई उसके लिए रो रहा है उसका अपना और मेरा दिमाग तब सुन्न होने लगता है जब मैं यह सोचता हूँ कि जब ये 11 महीने का बच्चा जब अपनी माँ के बारे मे पूछेगा तो जवाब क्या दूँगा ?
इसलिए इस लेख को पढने वाले पाठकों से यह अनुरोध है कि आप सभी कोरोना की भयावहता को समझिए और अपना और अपनों का ख़्याल रखिये।