Tokyo Paralympics: गोल्ड से सिर्फ एक कदम दूर डीएम सुहास इंजीनियरिंग के बाद ऐसे रखा खेलों के रास्ते पर कदम
टोक्यो पैरालंपिक में नोएडा के डीएम सुहास एलवाई ने पुरुष सिंगल्स बैडमिंटन एसएल-4 स्पर्धा के सेमिफाइनल मैच को जीतते हुए फाइनल में पहुंच गए हैं। वह देश के पहले ऐसे नौकरशाह हैं जिन्होंने पैरालंपिक में देश का प्रतिनिधित्व किया। स्वर्ण पदक के लिए उनका मुकाबला पांच सितंबर को होगा। अब पूरे देश की निगाहें उन पर टिकी हैं। उनके खेल की तरह की उनका निजी जीवन बेहद रोमांचक रहा है और उन्होंने इसमें कई मिथक तोड़े हैं। उन्होंने अपने पूरे जीवन में जो कुछ भी किया हमेशा अव्वल ही किया। प्रशासनिक सेवा में आने से पहले पढ़ाई और प्राइवेट नौकरी सब कुछ अव्वल ही किया। प्रशासनिक सेवा में कार्यरत लोग अमूमन मात्र शौक के लिए खेलते हैं लेकिन गौतमबुद्ध नगर के डीएम ने इस बात को झुठला दिया। अब वह पैरालंपिक में उस मुहाने पर पहुंच गए हैं जहां से उनका पदक जीतना पक्का है, अब यह वक्त बताएगा कि उसका रंग क्या होगा।
सुहास के लिए बैडमिंटन ही आध्यात्म है
जिलाधिकारी जैसे पद की अहम जिम्मेदारी होने के बावजूद सुहास बैडमिंटन के लिए समय निकाल लेते हैं। वह कहते हैं कि दुनिया में लोगों के पास 24 घंटे ही हैं। इनमें कई सारे काम कर लेते हैं और कुछ कहते हैं कि उनके पास समय नहीं है। किसी चीज के प्रति दीवानापन है तो उसे करने में तकलीफ नहीं होती। इसी तरह बैडमिंटन उनके लिए एक आध्यात्मिक अनुभव है। काम के साथ तीन घंटे की मेडीटेशन की बात को बड़ा नहीं माना जाएगा, लेकिन काम के साथ तीन घंटे बैडमिंटन खेलना लोगों को बड़ा लगेगा। बैडमिंटन उनके लिए मेडीटेशन है। जब वह खेलते हैं तो आध्यात्म का अनुभव करते हैं जिसमें किस तरह एक-एक प्वाइंट के लिए डूबना होता है। अगर किसी चीज को करने की चाहत है तो सामंजस्य बिठाया जा सकता है।
पैरालंपिक में देश का प्रतिनिधित्व गर्व-गौरव की बात
सुहास के मुताबिक उनके लिए पैरा खिलाड़ियों के महाकुंभ में देश का प्रतिनिधित्व करना गर्व और गौरव की बात है। उन्होंने सपने में नहीं सोचा था कि उनकी जिंदगी में यह दिन आएगा। जैसे बचपन में किसी विद्यार्थी से पूछा जाए कि वह ओलंपिक या पैरालंपिक खेलेगा। इसी तरह कोई यह नहीं कहेगा कि वह कलेक्टर बनेगा या फिर आईईएस बनेगा, लेकिन भगवान की उनके प्रति बहुत मेहरबानी रही है।