जाति और मुख्य जनगणना एक साथ होना मुश्किल, जानें क्यों?
नई दिल्ली। जाति जनगणना को लेकर भाजपा और सरकार ने भले ही सकारात्मक रूख दिखाया हो, लेकिन इसके मुख्य जनगणना के साथ होना मुश्किल है। भारत में जनगणना कराने वाले रजिस्ट्रार जनरल आफ इंडिया के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हर 10 साल पर होने वाली जनगणना 2021 में कराने की पूरी तैयार कर ली गई थी। जनगणना के पहले चरण में 2020 के अप्रैल से सितंबर के बीच में पूरे देश में घरों और पशुओं की गिनती की जानी थी। दूसरे चरण में फरवरी में जनसंख्या के आंकड़े जुटाने की योजना थी। इसके लिए लाखों जनगणना कर्मियों की ट्रेनिंग का काम भी पूरा कर लिया था। जनगणना के आंकड़े डिजिटल रूप में जुटाने के लिए कई वर्षों की मेहनत के बाद प्लेटफार्म तैयार किया गया था, जो आनलाइन और आफलाइन दोनों स्थितियों में काम कर सके, लेकिन मार्च में कोरोना महामारी शुरू होने के कारण जनगणना का काम पूरा नहीं किया जा सका।
डिजिटल प्लेटफार्म की पूरी कोडिंग में करना होगा बदलाव
उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी खत्म होने और स्वास्थ्य मंत्रालय से हरी झंडी मिलने के बाद किसी भी समय जनगणना का काम शुरू हो सकता है। जाति जनगणना के आंकड़े जुटाने के लिए मुख्य जनगणना के साथ कई नए कालम जोड़ने होंगे। इसके लिए डिजिटल प्लेटफार्म की पूरी कोडिंग में बदलाव करना होगा। इसके साथ ही जनगणना कर्मियों को नए सिरे से ट्रेनिंग देकर यह बताना होगा कि जाति की जनगणना के दौरान किस तरह से आंकड़े जुटाने होंगे और उन आंकड़ों को डिजिटल प्लेटफार्म पर कैसे भरना है।
जाति जनगणना के लिए मुख्य जनगणना को और आगे टालना संभव नहीं
आंकड़े जुटाने और डिजिटल प्लेटफार्म पर भरने में जरा सी गलती पूरे प्रयास पर पानी फेर सकती है। उन्होंने कहा कि 135 करोड़ की आबादी वाले देश में जनगणना एक श्रमसाध्य काम है और इसके लिए जनगणना कर्मियों को ट्रेनिंग देने में ही एक साल से अधिक समय लग जाता है। जाहिर है जाति जनगणना के लिए मुख्य जनगणना को और आगे टालना संभव नहीं होगा। उनके अनुसार यदि सरकार जाति जनगणना का फैसला करती है तो रजिस्ट्रार जनरल आफ इंडिया इसे नए सिरे से कराने को तैयार है।