पीएम के संसदीय क्षेत्र वाराणसी मे दिव्यांग है सड़कों पर, बन्द किया गया अन्धविद्यालय
दुर्गाकुण्ड मन्दिर के ठीक सामने 1972 से संचालित हनुमान प्रसाद पोद्दार अंन्ध विद्यालय है। यह विद्यालय 1972 में बनकर तैयार हुआ था। 1984/92 में क्रमशः इसे दसवीं और बारहवीं के लिए सरकारी मान्यता भी प्राप्त हुई। जिसमें 1 से 12वीं तक की कक्षाएं चलती थीं। पूरे पूर्वांचल में यह अकेला अन्ध विद्यालय है. जिसमें 250 से अधिक दृष्टिबाधित बच्चे पढ़ते थे। अब विद्यालय को धीरे-धीरे बन्द किया जा रहा है। वर्तमान सत्र में केवल 8 वीं तक प्रवेश हो रहा है। अंध विद्यालय के बंद होने के विरोध में पिछले कई दिनों से आंदोलन चल रहा है। उक्त विद्यालय को बंद करने का आदेश संचालन करने वाले ट्रस्ट द्वारा पारित होने के एक सप्ताह बाद ही छात्रों को जबरन वाराणसी से 400 किमी दूर दूसरे विद्यालय में भेज दिया। यह सब कोरोना महामारी व लॉकडाउन के समय किया गया ताकि छात्रों को असहमति जताने का कोई मौका न मिले। इस तरह के विशेष विद्यालयों का सर्वथा अभाव है, प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में एक ऐसे महत्वपूर्ण अंध विद्यालय का बंद किया जाना जिसे सरकारी अनुदान भी प्राप्त होता है, अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। अंधविद्यालय बंद होने के कारण पांच राज्यों यूपी, बिहार,मध्यप्रदेश, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ के छात्र प्रभावित होंगे।
विद्यालय को सरकार द्वारा अनुदान भी प्राप्त होता है। जनता की आस्था का इस्तेमाल दृष्टिहीनता पर किये जाने के कारण दान दाताओं का भी तांता लगा रहता है। मगर छात्रों के जीवन पर इन सुविधाओं का कोई असर नहीं पड़ता। इन पैसों और सुविधाओं का इस्तेमाल ट्रस्ट अपने व्यवसायिक कामों में करता दिखता है। यहां तक कि दान दाताओं को आकर्षित करने के लिए परीक्षा के दिनों में भी विद्यालय प्रांगण में ही कथाओं और दूसरे बड़े कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जिनका कोई भी सार्थक प्रभाव इन दृष्टिबाधित छात्रों के शिक्षा संबंधित उद्देश्यों को पूरा करने पर नहीं पड़ता।
विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे 19 दिन से बारिश और धूप में बैठे हुए हैं। लेकिन शासन- प्रशासन पर कोई भी फर्क नहीं पड़ रहा है। आप सभी से विनम्र आग्रह है कि दृष्टिबाधित बच्चों के इस विद्यालय को बचाने में आप भी सहयोग करें, समय निकाल कर धरना स्थल पर जायें, शोशल मीडिया पर लिखें। सरकार विकलांगों को यदि दिव्यांग कह दे तो उससे उनका कल्याण नहीं होगा। अच्छी शिक्षा, गरिमापूर्ण रोजगार और सम्मान से विकलांगों का कल्याण होगा।