ओलिंपिक : टोक्यो में नए भारत का उदय, ओलिंपिक गोल्ड मेडल भारत के लिए गेम चेंजर है
नीरज चोपड़ा का जेवलिन थ्रो में ओलिंपिक गोल्ड मेडल भारत के लिए गेम चेंजर है। टोक्यो में सात पदक हमारे देश को खेलों में शक्ति के रूप में नहीं दिखाते, लेकिन यह महसूस किया जा सकता है कि हम उस रेखा के काफी करीब आ गए हैं जो औसत और विलक्षण को विभाजित करती है। 23 जून, 1983 को लार्डस में गार्डन ग्रीनिज ने अगर बलविंदर सिंह संधू को हल्के में लेने की गलती नहीं की होती तो शायद न हम इस स्टेडियम की बालकनी में कपिल देव और उनके खिलाड़ियों को विश्वकप ट्राफी लिए देखते और न ही आज भारत की क्रिकेट टीम पावर हाउस के रूप में नजर आती।
क्या बदला, क्या बदलेगा : रियो में हुए पिछले खेलों में भारत की तरफ से केवल 20 खिलाड़ियों ने क्वार्टर फाइनल और उससे आगे प्रवेश किया था, जिनमें पुरुष हाकी टीम भी शामिल थी। इसके मुकाबले टोक्यो में 55 खिलाड़ियों का इस स्तर तक पहुंचना बताता है कि हमारे खिलाड़ियों की पदक के पास जाने की क्षमता बढ़ी है। कम से कम दस ऐसी स्पर्धाएं हैं जिनमें भारत का प्रदर्शन विश्वस्तरीय रहा। यह व्यापकता गौर करने लायक है। इसका सरल मतलब है कि हमने इन खेलों में ओलिंपिक के लिए न केवल क्वालीफाई किया, बल्कि अपनी उपस्थिति भी महसूस कराई। सात पदक इतिहास में अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन है, लेकिन इससे भी ऊपर लड़ने की क्षमता अधिक प्रभावशाली है। सुधार और क्षमता में वृद्धि सबसे अधिक हाकी में आनंद और राहत पहुंचाने वाली है। पतन को कोसते 35 साल बीते।