पुलिस थानों में मानवाधिकारों को सबसे ज्यादा खतरा, विशेषाधिकार प्राप्त लोगों को भी “थर्ड-डिग्री ट्रीटमेंट” से नहीं बख्शा जाता: CJI

भारत के चीफ जस्टिस एन वी रमना ने रविवार को कहा कि पुलिस थानों में मानवाधिकारों के लिए सबसे ज्यादा खतरा है और यहां तक कि विशेषाधिकार प्राप्त लोगों को भी “थर्ड-डिग्री ट्रीटमेंट” से नहीं बख्शा जाता है।

चीफ जस्टिस ने कहा कि पुलिस को अपने रवैये को ठीक करना होगा। उसकी छवि लोगों में अच्‍छी नहीं है। उन्होंने पुलिस के तौर तरीको पर सवाल उठाते हुए कहा कि  मानवाधिकार और शारीरिक सुरक्षा को सबसे ज्यादा खतरा देश के पुलिस स्टेशनों में हैं।

रविवार को यहां नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी ऑफ इंडिया (नालसा) की ओर से आयोजित कार्यक्रम में चीफ जस्टिस ने ‘विजन और मिशन स्‍टेटमेंट’ के साथ मोबाइल ऐप लॉन्‍च किया। उन्होंने कहा कि हिरासत में प्रताड़ना और पुलिस की अन्य तरह की ज्यादती बड़ी समस्या है। हमारे समाज में यह सब अभी भी चल रहा है।

चीफ जस्टिस ने कहा कि हाल की कई रिपोर्ट बताती हैं कि जो लोग विशेषाधिकार प्राप्त हैं, उन्हें भी थर्ड डिग्री से नहीं बख्शा जा रहा है। मानवाधिकार और गरिमा संवैधानिक गारंटी है। बावजूद इसके पुलिस स्टेशन में सबसे ज्यादा मानवाधिकार और शारीरिक अखंडता के लिए खतरा है। संवैधानिक गारंटी के बाद भी पुलिस स्टेशन में गिरफ्तार लोगों के प्रति कानून के सही इस्तेमाल की कमी दिखती है।

उन्होंने कहा कि तमाम संवैधानिक घोषणाएं और गारंटी हैं, लेकिन जो लोग गिरफ्तार किए जाते हैं या हिरासत में लिए जाते हैं, उनके प्रति कानून की नुमाइंदगी की कमी दिखती है जो उन्हें नुकसान पहुंचाता है। पुलिस के अत्याचार को रोकने और उस पर नजर रखने के लिए लोगों को उनके संवैधानिक अधिकार और मुफ्त कानूनी सहायता के बारे में जानकारी उपलब्ध कराना बेहद जरूरी है। देशभर के थानों और जेलों में होर्डिंग लगाया जाना जरूरी है। देशव्यापी तौर पर नालसा को पुलिस अधिकारियों को संवेदनशील बनाने के लिए काम करना होगा।

चीफ जस्टिस रमना ने कहा कि न्याय तक पहुंच के लिए कमजोर वर्ग और रसूखदार लोगों के बीच के अंतर को खत्म करना होगा। देश में सामाजिक और आर्थिक विविधताएं हैं। लेकिन, यह सब लोगों के अधिकार से वंचित होने का कारण नहीं बन सकता। हमें सभी को इस बात के लिए सुनिश्चित कराना होगा कि हम उनके लिए खड़े हैं। समाज कानून के शासन से चलता है। इसके लिए जरूरी है कि उस खाई को पाट दिया जाए जो विशेष अधिकार वाले लोगों और गरीब के बीच में बना हुआ है। बतौर जूडिशियरी अगर आम नागरिकों के विश्वास को पाना है तो हमें यह बात तय करनी होगी कि हम उनके लिए मौजूद हैं। न्याय पाने का अधिकार सतत प्रक्रिया है। जो लोग हासिये पर हैं, वे लंबे समय तक सिस्टम से बाहर रहे हैं। लेकिन, भूतकाल भविष्य को तय नहीं करता। हमें समानता के लिए मिलकर काम करना होगा।

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