चिंता की बात : प्रदूषण के कारण बढ़ रहे हैं राजधानी में सांस के रोगी
हवा में मौजूद पीएम 2.5 की मात्रा में 10 यूनिट बढ़ने से प्रत्येक एक सप्ताह में सात से अधिक अस्पतालों में सांस संबंधी मरीजों की संख्या बढ़ी है। उक्त बात की पुष्टि हाल ही में मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज द्वारा किए गए अध्ययन में सामने आई है।
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति(डीपीसीसी) द्वारा मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज को प्रदूषण के अध्ययन को लेकर कहा गया था। इसके तहत कॉलेज ने अप्रैल 2019 से स्वास्थ्य पर प्रदूषण के होने वाले प्रभाव को लेकर अध्ययन करना शुरू किया। करीब 15 महीनों तक अध्ययन करने के बाद कॉलेज ने तीन महीने पहले डीपीसीसी को अपनी रिपोर्ट जमा कर दी थी।
अध्ययन टीम का नेतृत्व कर रही मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग की प्रमुख और पूर्व डीन डॉ नंदिनी शर्मा ने बाबा साहब अंबेडकर अस्पताल, लोकनायक अस्पताल, दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल, जीटीबी अस्पताल, लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल और मदन मोहन मालवीय अस्पताल से आंकड़ों को जुटाया।
रिपोर्ट में पता चला कि पीएम10 और पीएम 2.5 के स्तर में बदलाव होने के साथ-साथ अस्पताल में दिल और सांस से जुड़े मरीजों की संख्या में भी तालमेल बैठ रहा था। रिपोर्ट में देखा गया कि पीएम 2.5 के स्तर में 10 यूनिट बढ़ने पर प्रत्येक सप्ताह 7.09 नई दाखिले दर्ज की जा रहे थे। रिपोर्ट में कहा गया कि हवा में एक्यूआई की मात्रा बढ़ने के साथ-साथ अस्थमा व अन्य सांस संबंधी मामले भी बढ़ रहे थे। साथ ही पीएम 2.5 के स्तर में 10 यूनिट बढ़ने पर दिल से संबंधित मरीजों के दाखिले में भी 1.1 की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
अध्ययन करने वाली टीम ने कम्युनिटी के आधार पर भी डाटा को संग्रह करने का काम किया। इसके तहत गतिविधियों पर लगाई गई रोक, जागरूकता और वायु गुणवत्ता में किए गए सुधार को लेकर दिल्ली के 11 जिलों में 18879 लोगों से डाटा जुटाया गया। अध्ययन में पाया गया कि अधिक पढ़े लिखे लोगों में वायु गुणवत्ता सुधार को लेकर अधिक जागरूकता देखी गई।
करीब 96.5 फीसदी लोगों ने वायु प्रदूषण के लिए वाहनों को जिम्मेदार ठहराया। वहीं, करीब 77 फीसदी लोगों ने औद्योगिक प्रदूषण को जिम्मेदार माना। इसके अलावा 65 फीसदी लोगों ने खुले में जलने वाले कचरे, 46 फीसदी लोगों ने निर्माण स्थलों पर होने वाली गतिविधियां और 28 फीसदी लोगों ने बम पटाखे और पराली जलने को वायु प्रदूषण का जिम्मेदार ठहराया।