मनरेगा के तहत एक साल में 48 फीसदी घटा रोजगार
कोरोना संक्रमण के दूसरी लहर की मार ग्रामीण क्षेत्रों के रोजगार पर भी पड़ी है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत एक साल के भीतर रोजगार में 48 फीसदी की बड़ी गिरावट आई है। मई 2020 में जहां योजना के तहत 50.83 करोड़ लोगों को काम मिला था, वहीं अब यह संख्या घटकर 26.38 करोड़ रह गई है।
जेएनयू में आर्थिक अध्ययन विभाग के प्रोफेसर हिमांशु का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों के दूरदराज इलाकों तक संक्रमण की दूसरी लहर पहुंच गई। इससे मनरेगा के तहत काम की मांग में करीब 26 फीसदी गिरावट आई और रोजगार की संख्या भी घटी। इसके अलावा पिछले साल शहरों से बड़ी संख्या में पलायन करने वाले मजदूरों ने फिर शहरों का रुख कर लिया, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में इस साल काम और रोजगार की मांग भी घट गई।
इसके अलावा पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में चुनावों के कारण ग्रामीण क्षेत्र की नई परियोजनाओं पर रोक लगानी पड़ी और रोजगार की संख्या पर असर पड़ा।
योजना को मिले 73 हजार करोड़, पिछले साल से 35 फीसदी कम
केंद्र ने 2021-22 के लिए मनरेगा योजना को 73 हजार करोड़ रुपये दिए हैं, जो पिछले वित्त वर्ष में आवंटित कुल राशि से 34.52 फीसदी कम है। सरकार ने 2020-21 में पहले 61,500 करोड़ दिए, लेकिन महामारी के बाद ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार उपलब्ध कराने के लिए इस राशि को बढ़ाकर 1,11,500 करोड़ रुपये कर दिया था। शहरों से ग्रामीण क्षेत्रों में लौटे मजदूरों को काम दिलाने के लिए योजना में 40 हजार करोड़ की अतिरिक्त राशि डाली गई।
इस बार गंभीर नहीं सरकार : प्रणब सेन
भारत के प्रमुख सांख्यिकीविद प्रणब सेन का कहना है कि महामारी का जोखिम पिछले साल भी था और इस साल भी है। हालांकि, सरकार इस बार 2020 जितनी गंभीर नहीं दिख रही। विपक्ष और सामाजिक कार्यकर्ता भी ग्रामीण क्षेत्रों की हालत सुधारने के लिए मनरेगा को मजबूत बनाने की आवाज नहीं उठा रहे हैं।
नरेगा संघर्ष मोर्चा की कार्यकर्ता देवमाल्या नंदी के अनुसार, फंड और इच्छाशक्ति के अभाव में ग्रामीण क्षेत्र की हालत महामारी की दूसरी लहर के बाद ज्यादा चिंताजनक हो सकती है। केंद्र के अलावा राज्य सरकारों को भी इस दिशा में गंभीरता से विचार करना चाहिए।