फंगस के अभी कई रंग देखने को मिल सकते हैं, विशेषज्ञ बोले- ये पांच भी हैं प्राण घातक
फंगस अभी एक-एक करके आते रहेंगे। इनका स्वरूप भी घातक होने की उम्मीद है। कोविड के रोगियों को स्टोरॉयड दिया जा रहा है, जो बेहद जरूरी है। लेकिन इससे शरीर के प्रतिरोधक क्षमता खत्म होती जा रही है। नतीजन हवा में मौजूद फंगस लोगों को अपनी गिरफ्त में ले रहा है। फिलहाल म्यूकरमाइकोसिस की वजह से कोविड रोगियों में बतौर ब्लैक फंगस की जटिलताएं बढ़ी हैं। इसी तरह व्हाइट फंगस यानि कैंडिडिआस का असर पोस्ट कोविड मरीजों में देखने को मिल रहा है। इस तरह के कई फंगस और हैं, जो जनलेवा हो सकते हैं।
यह कहना है कि इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटिग्रेटिव बायोलॉजी दिल्ली के पूर्व डायरेक्टर व बायोमेडिकल साइंसेज बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी के डॉ. जीएल शर्मा का। वह मानते हैं कि पोस्ट-कोविड लक्षण आने वाले दिनों में और अधिक प्राण घातक हो सकता है। अभी तो कई तरह के फंगस और दिखने की आशंका है।
डॉ. जीएल शर्मा बताते हैं कि कुछ ही समय पूर्व म्यूकरमाइकोसिस से कोरोना रोगियों में जटिलताएं बढ़ी हैं। म्यूकरमाइकोसिस, म्यूकर नाम के फंगस के कारण होता है। कोविड के रोगियों में म्यूकर के कारण नाक, आंख, गला तथा फेफड़ों में गंभीर समस्या होने के प्रमाण मिले हैं। इसके अलावा राहिजोपस, कोक्सिडिओसिस, हिस्टोप्लास्मोसिस, ब्लास्टोमाइकोसिस व एस्पर्जिलोसिस नामक अन्य फंगल संक्रमण हैं, जो कोविड-19 की दृष्टि से बेहद अहम हैं।
भारतीय उपमहाद्वीप की भौगोलिक स्थिति तथा संक्रमण की व्यापकता के हिसाब से इन सभी संक्रमणों में से एस्पर्जिलोसिसि सबसे से अधिक चिंताजनक है। फंगल संक्रमणों में सेएस्पर्जिलोसिस सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। परन्तु इसकी तरफ किसी भी वैज्ञानिक व क्लिनिशिअन का ध्यान ज्यादा नहीं गया है। दो दिन पहले ही पीजीआई चंडीगढ़ व केजीएमयू लखनऊ के अस्पतालों में इस फंगस संक्रमित मरीज मिले है।
ब्लैक फंगस उपयुक्त नाम नहीं है
म्यूकरमाइकोसिस को ब्लैक फंगस या काला फफूंद कहा जा रहा है। वास्तव में इसका ब्लैक फंगस उपयुक्त नाम नहीं है। इसके तन्तुओं का तो रंग भूरा-सफेद होता है। यह बात अलग है कि जिस स्थान पर यह पनपता है वहां त्वचा का रंग कुछ काला हो जाता है। संभवतया इसी कारण इसेक्लिनीशियन्स ने काले फंगस की संज्ञा दे दी है। यह मिट्टी तथा गले सड़े कार्बनिक पदार्थों पर पनपता है। साधारणतया मनुष्यों में संक्रमण नहीं करता है। विशेष परिस्थितियोंमें इसे यदि मनुष्य की वाह्यत्वचा या किसी आतंरिक अंग में पहुंचने का अवसर मिल जाता हैतो वहां संक्रमण कर देता है।
इसी तरह फ्यूमिगेटस के कॉनीडिआ, त्वचा, नाक, कान, आंख, मुख, गुहा आदि बाह्य अंगों को संक्रमित कर सकते हैं। सांसके द्वारा कॉनिडिआ सीधे फेंफड़ोंमें प्रवेश कर जाते हैं। एस्पर्जिलस संक्रमण सबसे पहले फेफड़े में होता है। सक्षम और प्रभावशाली प्रतिरक्षा तंत्रवाले व्यक्ति इन कॉनिडिआओं को विघटित करके बाहर निकाल देते हैं और फेफड़ों में संक्रमण नहीं होता। परन्तु प्रतिरोधक क्षमता कम होने से फेफड़ों का गंभीर संक्रमण हो जाता है।
फ्यूमिगेटस की वजह से बढ़ रही पोस्ट कोविड समस्याएं
दवा के अधिक प्रयोग से शरीर के अंदर रोग-प्रतिरोधक तंत्र अस्थाई रूप से निष्क्रिय हो जाता है। इस वजह से फ्यूमिगेटस फेफड़ों में जाकर एक परत के रूप में फैलने लगता है। इससे ‘एलर्जिक ब्रोंकोपल्मोनरीएस्पर्जिलोसिस’ नामक रोग होता है। इससे लगातार हल्का बुखार, कमजोरी, थकावट, सांस लेने में असुविधा, दमा तथा घातक निमोनिआ जैसे लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं।
कभी-कभी तो यह फेफड़ों की भित्ति में कोटर (कैविटी) भी बना देता है। इसमें फ्यूमिगेटस के तन्तुओं के गुच्छे,गेंदों का रूप धारण कर लेते हैं। कोरोना संक्रमण के समय यदि एस्पर्जिलोसिस हो जाए तो रोगी में श्वसन संबंधित परेशनियों से घिर जाता है। ऐसा देखने में आया है कि रोगी कोरोनामुक्त हो गया है परन्तु निमोनिआ एवं श्वास सम्बन्धी समस्या बनी ही रहती है। कोविड या पोस्ट-कोविडकेसों में मानसिक असंतुलन तथा मस्तिष्क विकार की समस्याकाफी मिली है।