हर माह बन रही 8.5 करोड़ वैक्सीन, पर मई के पहले तीन हफ्ते में आवंटन 3.6 करोड़ का
सरकार द्वारा देश में बन रही वैक्सीन का हिसाब सुप्रीम कोर्ट में पेश किया गया है। इसमें बताया गया है कि देश में हर माह करीब 8.5 करोड़ वैक्सीन के डोज बन रहे हैं। मई के शुरुआती तीन हफ्तों में टीकाकरण के लिए राज्यों को 3.6 करोड़ वैक्सीन दी गई है। पूरे माह का आंकड़ा इसी आधार पर जोड़े तो यह करीब पांच करोड़ होगा। ऐसे में सवाल लाजिमी है कि बची करीब 3.5 करोड़ वैक्सीन की खुराक कहां जा रही हैं और देश में किल्लत क्यों हो रही है?
देश में वैक्सीन की कमी के कारण कई राज्यों ने 18 प्लस आयु के लोगों का टीकाकरण रोक दिया है। लेकिन यह किल्लत क्यों हो रही है, यह समझ नहीं आ रहा है। सरकार और वैक्सीन निर्माताओं के आंकड़ों के अनुसार हर दिन 27 लाख डोज तैयार हो रहे हैं, लेकिन देशवासियों को टीके इससे कम ही लगाए जा रहे हैं। एक अखबार की रिपोर्ट के अनुसार मई के शुरुआती तीन हफ्तों में औसतन 16.2 लाख डोज राज्यों को दी गई।
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को यह जानकारी दी
केंद्र सरकार ने इस माह के आरंभ में सुप्रीम कोर्ट को शपथ पत्र देकर कहा था कि सीरम इंस्टीट्यूट हर माह 6.5 करोड़ कोविशील्ड बना रही है, जबकि भारत बायोटेक हर महीन 2 करोड़ कोवाक्सिन के डोज बना रही है। यदि दोनों प्रमुख टीका निर्माता कंपनियों के आंकड़े जोड़ें जाएं तो हर माह 8.5 करोड़ खुराक का उत्पादन हो रहा है। इस तरह एक दिन का औसत उत्पादन करीब 27 लाख डोज होगा। कोवाक्सिन का उत्पादन जुलाई के आखिर तक 2 करोड़ से बढ़ाकर 5.5 करोड़ तक कर दिया जाएगा। इसी तरह स्पूतनिक की 30 लाख डोज हर माह बन रही है और जुलाई अंत तक इसका प्रोडक्शन भी 1.2 करोड़ तक पहुंच जाएगा।
22 मई तक 3.6 करोड़ वैक्सीन दी गईं
सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें तो 22 मई तक कोविशील्ड-कोवाक्सिन की 3.6 करोड़ से कम ही डोज देश में दी गई हैं। इसी गति से टीकाकरण चला तो महीना पूरा होते-होते कुल पांच करोड़ खुराक देश में दी जाएंगी।
घट रहे टीकाकरण के आंकड़े
उधर, बीते सात दिनों में टीकाकरण के आंकड़े देखें तो ये 16.2 लाख खुराक प्रतिदिन से घटकर 13 लाख से नीचे आ गए हैं। यदि इस पूरे माह में पांच करोड़ डोज भी दे दिए गए तो भी सवाल उठता है कि जब 8.5 करोड़ डोज बन रहे हैं तो किल्लत क्यों हो रही है। क्या वैक्सीन का बड़े पैमाने पर निर्यात किया जा रहा है या यूएन के कोवैक्स कार्यक्रम के तहत इन्हें मदद के तौर पर दूसरे देशों के लिए दिया जा रहा है।