संगीत साहित्य की एक कड़ी टूटी : शब्द सम्मान साधिका सुनीता बुद्धिराजा नहीं रहीं
साहित्य की सुपरिचित हस्ताक्षर, पंडित जसराज की गायन परंपरा पर गहरी समझ रखने वाली और अमर उजाला शब्द सम्मान से सम्मानित सुनीता बुद्धिराजा नहीं रहीं। कोरोना वायरस की वजह से गुरुवार शाम उनका निधन हो गया।
किताबों से हमेशा घिरी और जिंदगी के हर पन्ने से कुछ न कुछ सीखती रहने वाली सुनीता बुद्धिराजा की साहित्यकार मां राजा बुद्धिराजा का भी कुछ दिन पहले निधन हो गया था।
सुनीता बुद्धिराजा अक्सर कहती थीं, वर्षों तक सुरीले व्यक्तियों को सुनते-सुनते मेरा कान भी सुरीला हो गया है। उठते-बैठते संगीत को सुनना मेरी आदत सी हो गई। शायद इसी आदत का कमाल रहा कि संगीत पर लेखन ने उनको बड़ी पहचान दिलाई।
हालांकि एक कवि और कविता से अलग साहित्यिक लेखन में भी वह सराही जाती रहीं। उनकी 11 से अधिक किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनका पहला कविता संग्रह ‘आधी धूप’ था जिसका तेलुगू में भी अनुवाद हुआ। उनका दूसरा काव्य संग्रह ‘अनुत्तर’ भी प्रसिद्ध हुआ।
उन्हें कई सम्मान मिले, जिसमें शिरोमणि पुरस्कार, सुपर स्टार अवार्ड, पीआर पर्सन ऑफ द ईयर अवार्ड, ग्लोबल वूमन अचीवर अवार्ड के साथ अमर उजाला का शब्द सम्मान भी शामिल था।
दिग्गज संगीतकारों पर किया विशेष काम
साल 2018 के शब्द सम्मान में कथेतर वर्ग का छाप सम्मान सुनीता बुद्धिराजा की कृति ‘रसराज-पंडित जसराज’ को दिया गया था। सुनीता बुद्धिराजा का जन्म 17 नवंबर 1954 को नई दिल्ली में हुआ था। उन्होंने पंडित जसराज के अलावा भारत के अन्य दिग्गज संगीतकारों में से उस्ताद बिस्मिल्लाह खान, पंडित किशन महाराज, डॉ. एम बालमुरली कृष्ण, पं. शिव कुमार शर्मा, पं. बिरजू महाराज और पं. हरिप्रसाद चौरसिया पर भी विशेष काम किया था। उन्हें संगीत समारोहों की एंकरिंग का भी जबरदस्त शौक था और इस विधा की स्टार मानी जाती थीं। उनके निधन से संगीत साहित्य की एक कड़ी सी टूट गई है।