हाईकोर्ट का आदेश खारिज: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, निजी वाहन सार्वजनिक स्थान के दायरे में नहीं आते
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निजी वाहन नारकोटिक्स ड्रग एंड साइकोट्रोपिक सबस्टांस (एनडीपीएस) एक्ट के तहत सार्वजनिक स्थान की अभिव्यक्ति के दायरे में नहीं आते। ऐसे में बिना वारंट उस वाहन की छानबीन नहीं की जा सकती।
जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने यह कहते हुए बूटा सिंह और दो अन्य द्वारा पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपील को स्वीकार कर लिया। शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के फैसले को दरकिनार कर दिया है, जिसमें इन तीनों को निजी जीप में 75 किलोग्राम खसखस रखने के आरोप में 10-10 वर्ष कैद की सजा सुनाई गई थी और एक-एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया था।
शीर्ष अदालत ने कहा है कि एनडीपीएस एक्ट की धारा-42 के अनुसार, छापा मारने वाले अधिकारियों को एक निजी वाहन की छानबीन करने के लिए कारण रिकॉर्ड करना होता है, लेकिन इस मामले में अधिकारियों द्वारा ऐसा नहीं किया गया। अधिकारियों की ओर से दावा किया गया था कि भले ही वाहन निजी था, लेकिन वह सार्वजनिक स्थान (सड़क) पर खड़ा था, ऐसे में उन्हें बिना वारंट छानबीन करने की अनुमति नहीं है। उनकी ओर से एनडीपीएस अधिनियम की धारा-43 का हवाला देते हुए कहा गया था कि यदि किसी सार्वजनिक स्थान पर सार्वजनिक वाहन की तलाशी ली जाती है, तो अधिकारी को कारणों को रिकॉर्ड करने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन शीर्ष अदालत ने उनकी इन दलीलों को खारिज कर दिया।
कोर्ट ने आरोपियों को किया रिहा
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि इस मामले में साक्ष्य स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि वाहन सार्वजनिक नहीं था बल्कि अभियुक्त का वाहन था। वाहन का पंजीकरण प्रमाणपत्र भी यह साबित नहीं करता है कि वह सार्वजनिक वाहन था। शीर्ष अदालत ने कहा है कि धारा-43 से साफ है कि निजी वाहन सार्वजनिक स्थान की अभिव्यक्ति के दायरे में नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले में वैधानिक जरूरतों का पालन नहीं किया गया, इसलिए आरोपी रिहाई के हकदार हैं।