खाद्य तेलों की महंगाई से तिलहन किसानों की बल्ले-बल्ले, मिल रही MSP से काफी अधिक कीमत
खाद्य तेलों की महंगाई से आम उपभोक्ता हलकान जरूर है, लेकिन तिलहन किसानों की बल्ले-बल्ले है। मंडियों में तिलहन किसानों को उनकी उपज का एमएसपी से बहुत अधिक मूल्य मिलने लगा है। इसीलिए किसान अपनी उपज सरकारी एजेंसी के बदले खुले बाजार में बेचकर अधिक मूल्य प्राप्त कर रहा है। तिलहन उत्पादक सभी राज्यों के किसान इस खास मौके का फायदा उठा रहे हैं।
वैश्विक बाजार की तेजी से घरेलू खाद्य तेल बाजार का मिजाज जरूर बिगड़ा है, लेकिन इससे खाद्य तेलों की आयात निर्भरता को घटाने में जरूर मदद मिल सकती है। तिलहन के भाव बढ़ने से किसानों का रुझान तिलहन खेती की ओर हुआ है।
खाद्य तेलों में तेजी का सिलसिला रबी सीजन की बोआई से पहले चालू हो गया था। इसके मद्देनजर किसानों का रुझान तिलहन फसलों की खेती की ओर हुआ है। यही वजह है कि चालू सीजन में तिलहन की अनुमानित पैदावार 3.73 करोड़ टन होगी, जो पिछले फसल वर्ष 2019-20 के 3.31 करोड़ टन से अधिक है। उत्पादन का यह अनुमान पिछले वर्षों की औसत तिलहन पैदावार से बहुत अधिक है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों की मांग व आपूर्ति मे भारी अंतर होने की वजह से कीमतें बहुत बढ़ गई हैं। इसका सीधा असर घरेलू उपभोक्ताओं पर पड़ रहा है। खाद्य तेल बाजार के जानकारों के मुताबिक, कीमतों में 30-70 फीसद तक की वृद्धि हुई है। वहीं, वर्ष 2012 में प्रति व्यक्ति 15-16 किलो सालाना तेल की खपत होती थी, जो अब बढ़कर 20 किलो तक पहुंच गई है।
रबी सीजन की खरीद के पहले पखवाड़े में आम तौर पर हरियाणा में सरसों की खरीद होती रही है। लेकिन इस बार यहां की मंडियों में व्यापारियों ने सरसों के एमएसपी 4650 रुपए प्रति क्विंटल के मुकाबले 5,500-5800 के भाव पर अलग-अलग मंडियों में खरीद की है। तिलहन किसानों को इस बार खुले बाजार में बिक्री से ही ज्यादा फायदा हुआ है। जबकि पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ किसान संगठन दिल्ली की सीमा पर एमएसपी की गारंटी की मांग को लेकर लंबे समय से आंदोलन कर रहे हैं।
कोविड-19 की वजह से इंडोनेशिया और मलेशिया में मजदूरों की किल्लत और यूक्रेन, अंर्जेटीना और ब्राजील में उत्पादन कम होने की वजह से वैश्विक बाजारों में खाद्य तेलों की आपूर्ति प्रभावित हुई है। चीन ने भी खाद्य तेलों की भारी खरीद की है, जिसका असर आपूर्ति पर पड़ा है। मांग और आपूर्ति के इस अंतर को पाटने के लिए सरकार ने विशेष प्रयास शुरू किए हैं। इसके लिए मिनी ऑयल सीड मिशन शुरू किया गया है। देश में तेल की जरूरतों को पूरा करने में 90 फीसद हिस्सेदारी सोयाबीन, सरसों और मूंगफली की है।
आयात का है बड़ा बोझ
दरअसल, देश में खाद्य तेलों की कुल खपत का 70 फीसद आयात से पूरा होता है। सालाना 1.50 करोड़ टन खाद्य तेलों का आयात करना पड़ता है, जिस पर 73 हजार करोड़ रुपये से भी अधिक की लागत आती है। यह कुल कृषि उत्पादों के आयात का अकेले 40 फीसद है। खाद्य तेलों की कुल खपत 2.60 करोड़ टन होती है।
सरकारी एजेंसियों की पूछ नहीं
अभी तक सरकारी एजेंसियों के लिए एक दाना तिलहन भी खरीदना संभव नहीं हो सका है। इसकी मूल वजह यह है कि खाद्य तेलों की तेजी से तिलहन के भाव भी सातवें आसमान पर पहुंच गए हैं। सरकारी एजेंसियां निर्धारित एमएसपी पर ही खरीद सकती हैं। जबकि मंडी में निजी व्यापारियों ने एमएसपी से बहुत अधिक मूल्य पर खरीद शुरू कर दी है।