सबसे बड़ा संग्राम: किसका होगा नंदीग्राम, भाजपा बाजी मारेगी या दीदी की टीएमसी?
पश्चिम बंगाल में हो रहे विधानसभा चुनाव पर पूरे देश की नजरें बनी हुई हैं, लेकिन नंदीग्राम का संग्राम सबसे बड़ा माना जा रहा है। कहा तो यह भी जा रहा है कि अब बंगाल की लड़ाई अब नंदीग्राम पर सिमटकर रह गई है। यानी कि भाजपा या टीएमसी भले ही बंगाल जीत जाएं, लेकिन नंदीग्राम हार जाते हैं तो उसे नैतिक हार माना जा सकता है। ऐसे में यह समझना जरूरी है कि भाजपा और टीएमसी के लिए नंदीग्राम आखिर इतना अहम क्यों हो गया? जिस नंदीग्राम में 2016 के दौरान भाजपा का खाता भी नहीं खुला था, वहां आखिर टीएमसी को हार का डर इतना क्यों सताने लगा कि ममता बनर्जी खुद मैदान में उतर आईं?
दीदी-दादा का मुकाबला
करीब 14 साल पहले बंगाल में एक आंदोलन छिड़ा था, जिसकी गूंज पूरी दुनिया ने सुनी और सिंगूर-नंदीग्राम का नाम चर्चा में आ गया। यही नंदीग्राम एक बार फिर सुर्खियों में है और वजह है विधानसभा चुनाव के मद्देनजर धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण। दरअसल, नंदीग्राम विधानसभा सीट पर एक अप्रैल को मतदान होगा और यहां ममता बनर्जी यानी दीदी व सुवेंदु अधिकारी यानी दादा के बीच आमने-सामने की टक्कर है। यह वही सुवेंदु अधिकारी हैं, जो 20 साल पहले तक ममता बनर्जी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते थे, लेकिन अब उनके ही खिलाफ चुनावी मैदान में हैं। अहम बात यह है कि नंदीग्राम ही वह जगह है, जहां से ममता ने सत्ता की सीढ़ी चढ़ी थी। …और एक बार फिर सत्ता के लिए ममता नंदीग्राम जीतने की कोशिश कर रही हैं।
ऐसा है जातीय समीकरण
बता दें कि नंदीग्राम दो ब्लॉक में बंटा हुआ है। नंदीग्राम-1 और नंदीग्राम-2। नंदीग्राम-1 में दो शहरी इलाके और 98 गांव हैं। यहां दो लाख सात हजार मतदाता हैं, जिनमें करीब 19 फीसदी दलित और 34 फीसदी मुस्लिम हैं। वहीं, नंदीग्राम-2 में एक शहरी इलाका और 40 गांव हैं। यहां एक लाख 23 हजार मतदाता हैं, जिनमें करीब 13 फीसदी दलित और करीब 12 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं। बता दें कि नंदीग्राम के 97 फीसदी वोटर ग्रामीण इलाकों में रहते हैं।
लोकसभा चुनाव ने बढ़ाई टीएमसी की चिंता
गौरतलब है कि 2016 के विधानसभा चुनाव के दौरान नंदीग्राम में भाजपा का खाता नहीं खुला था, जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 34 पोलिंग बूथ पर बढ़त बनाई थी। वहीं, 2016 में टीएमसी को 264 पोलिंग बूथ पर बढ़त मिली थी, जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में टीएमसी सिर्फ 244 पोलिंग बूथ पर ही बढ़त बरकरार रख सकी। अगर माकपा की बात करें तो 2016 में पार्टी ने सात पोलिंग बूथ पर बढ़त बनाई थी, लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में वह किसी भी पोलिंग बूथ पर बढ़त नहीं बना सका। इस बीच गौर करने वाली बात यह भी है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को नंदीग्राम-1 के मुकाबले नंदीग्राम-2 में ज्यादा फायदा हुआ था।
2019 में बढ़ा भाजपा का वोट शेयर
2016 के विधानसभा चुनाव के दौरान नंदीग्राम-1 में टीएमसी ने 71.7 प्रतिशत और भाजपा ने 5.7 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। वहीं, नंदीग्राम-2 में टीएमसी को 59.5 प्रतिशत और बीजेपी को 4.7 प्रतिशत वोट मिले थे। अगर लोकसभा चुनाव 2019 की बात करें तो नंदीग्राम-1 में टीएमसी को 66.2 प्रतिशत और बीजेपी को 27.1 प्रतिशत वोट मिले थे। इसके अलावा नंदीग्राम-2 में टीएमसी को 57.3 प्रतिशत और बीजेपी को 34.3 प्रतिशत वोट मिले थे। देखा जाए तो नंदीग्राम टीएमसी का गढ़ है, लेकिन 2019 के बाद समीकरण काफी बदल गए। ऐसे में ममता बनर्जी ने भाजपा की चुनौती को समझा और जोर-शोर से प्रचार किया।