DATA STORY: जानें, एशिया में किन देशों की हवा बेहतर है और किनकी खराब, भारत की स्थिति में हुआ सुधार
नई दिल्ली । दुनियाभर में प्रदूषण को लेकर हर देश लगातार काम कर रहा है। विभिन्न देशों के प्रयास से दुनियाभर के हालात में थोड़ा सुधार तो हुआ है, पर यह पर्याप्त नहीं है। प्रदूषण को लेकर एशियाई देशों की काफी आलोचना होती रहती है। लेकिन इस क्षेत्र में कई देश ऐसे हैं, जहां हवा की गुणवत्ता काफी बेहतर है। वहीं, कुछ ने इसे अच्छा बनाने की दिशा में अच्छे कदम उठाए हैं, जिनके अच्छे परिणाम दिखाई दे रहे हैं।
विभिन्न देशों की रैंकिंग में बांग्लादेश की स्थिति सबसे खराब बताई गई है। इसके बाद पाकिस्तान और भारत की हवा की गुणवत्ता सबसे खराब बताई गई है। वर्ल्ड कैपिटल सिटी रैंकिंग में दिल्ली सबसे ऊपर है और उसके बाद ढाका और उलनबटार का नंबर आता है। उल्लेखनीय रूप से भारत के कई शहरों में प्रदूषण के मामले में समग्र सुधार दर्ज किया गया है, जिसमें 2019 की तुलना में 63 प्रतिशत प्रत्यक्ष सुधार देखा गया है।
भारत के वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों में परिवहन, खाना पकाने के लिए बायोमास जलाना, बिजली उत्पादन, उद्योग, निर्माण, अपशिष्ट जलाना और समय-समय पर पराली जलाना आदि शामिल हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि दिल्ली के वायु प्रदूषण का 20 से 40 प्रतिशत हिस्सा सीजन में पंजाब के खेतों में पराली जलाने की वजह से होता है।
एशिया में सबसे कम प्रदूषित शहर मियामी का क्योटो है। इसके अलावा फिलीपींस के कालंबा की हवा भी काफी बेहतर है। एशियाई देशों में जापान, सिंगापुर, फिलीपींस, ताइवान, हांगकांग की हवा अच्छी है। जापान में औसत पीएम 2.5 का स्तर 9.8 है, तो सिंगापुर में 11.8 है। फिलीपींस में यह लेवल 12.8 और ताइवान में 15 है। सिंगापुर, बीजिंग औऱ बैंकाक ने हवा के स्तर में क्रमश: 25, 23 और 20 फीसद सुधार किया है।
रिपोर्ट बताती है कि 2019 से 2020 तक दिल्ली की हवा की गुणवत्ता में लगभग 15 फीसद का सुधार हुआ है। इसमें कहा गया है कि सुधार के बावजूद दिल्ली दुनिया के 10 वें सबसे प्रदूषित शहर और शीर्ष प्रदूषित राजधानी के रूप में स्थान पर है।
वैश्विक शहरों की रैंकिंग रिपोर्ट 106 देशों के पीएम 2.5 डेटा पर आधारित है, जिसे ग्राउंड-आधारित निगरानी स्टेशनों द्वारा मापा जाता है, जिनमें से अधिकांश सरकारी एजेंसियों द्वारा संचालित होते हैं। रिपोर्ट में वैश्विक कण प्रदूषण (पीएम2.5) स्तरों पर कोविड-19 लॉकडाउन और व्यवहार परिवर्तन के प्रभाव का भी पता चलता है।