Social Media : सोशल मीडिया पर निगरानी जरूरी, अभिव्यक्ति को खतरा नहीं
सोशल मीडिया पर निगरानी को लेकर चल रहे विमर्श के बीच स्वदेसी माइक्रो ब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म कू के सह-संस्थापक मयंक बिडवातका का कहना है कि भारत ही क्यों, पूरी दुनिया के सरकारों को ऐसी पॉलिसी लानी चाहिए।
इससे अभिव्यक्ति की आजादी बिल्कुल प्रभावित नहीं होगी। मान लीजिए कि आप किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के सीईओ हैं, जहां पर मुखौटे की आड़ में कोई कुछ भी (गलत) बोल रहा है और उसके नासमझ फॉलोअर उसे रिट्वीट कर देश-समाज में नफरत फैला रहे हैं। इस पर लगाम कसने के लिए बतौर सीईओ यह पता
लगाना आपका कर्तव्य है कि पहला ट्वीट किसने किया और उसे कैसे रोकेंगे। उनका कहना है कि आप सड़क पर किसी महिला को गाली नहीं दे सकते हैं या किसी का खून नहीं कर सकते हैं क्योंकि कानून है तो फिर इंटरनेट के लिए कानून क्यों नहीं। ऑफलाइन दुनिया में आप जो नहीं कर सकते, ऑनलाइन दुनिया में भी नहीं होना चाहिए।
सोशल मीडिया के खिलाफ नहीं बनेंगे सरकार का हथियार मयंक कहते हैं कि कू मेरी और मेरे पार्टनर की कंपनी है, सरकार की नहीं। इसलिए यह स्वायत्त (ऑटोनॉमस) रूप से काम करेगी। यहां मुद्दा कुछ और है। ट्विटर का ही उदाहरण ले लीजिए…ट्विटर बहुत खूबसूरत और लोकतांत्रिक उत्पाद है। इसमें फंडामेंटली कोई कमी नहीं है।
समस्या वो लोग हैं, जो सिर्फ अपने फायदे के लिए ट्विटर पर बुरी चीजें करते हैं। सरकार अगर देश की एकता और अखंडता बनाए रखने के लिए नियम लाती है तो इसमें बुराई क्या है।
जरूर देंगे आंदोलनों को आवाज…आंदोलनों की आवाज बनने के सवाल पर उन्होंने कहा कि सरकार ने आपको अपनी बात रखने पर पाबंदी नहीं लगाई है। सबसे बड़ी चिंता बाहर वालों की है, जो देश के अंदरूनी मामलों का फायदा उठाना चाहते हैं और बिना किसी तथ्य या सुबूत के प्रॉपगेंडा फैलाकर लोगों को गुमराह कर रहे हैं।
बिना किसी सुबूत के किसी को चोर बोलना सही बात तो नहीं है। अगर कोई कानून के दायरे में रहकर सही और शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन के जरिए अपनी बात रखता है तो हम जरूर उसकी आवाज बनेंगे।
ट्विटर से लोगो चोरी का आरोप बेबुनियाद
ट्विटर से लोगो चुराने जैसी खबरों का कोई आधार नहीं है। मान लीजिए, आपको थम्स अप दिखाना है तो इसके लिए एक ही तरीका है। फेकबुक पर आप किसी कंटेंट को लाइक करते हैं तो वहां थम्स अप बनकर आता है। इसका यह मतलब तो नहीं है कि थम्स अप कंपनी फेसबुक पर लोगो चोरी का आरोप लगा दे।
ट्विटर को पांच साल में पीछे छोड़ देंगे मयंक का कहना है कि ट्विटर हमारा प्रतिद्वंद्वी नहीं है क्योंकि वो अंग्रेजी में है और हम भारतीय भाषाओं में। ट्विटर अंग्रेजी के साथ भारतीय भाषाओं में आता है, तब हमारा प्रतिस्पर्धी होगा। फिर भी जितनी तेजी से लोग हमारे साथ जुड़ रहे हैं, पांच साल तो क्या उससे पहले ही हम ट्विटर को पीछे छोड़ देंगे