इतिहासकार नृपेंद्र सिंह बताते हैं कि लालबहादुर शास्त्री अगस्त 1942 में मुंबई में कांग्रेस के ऐतिहासिक अधिवेशन में भाग लेने के लिए गए थे। जब आठ अगस्त को ही सभी बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गए तो वे भी लुकते-छिपते रेलगाड़ी से प्रयागराज रवाना हुए। नैनी रेलवे स्टेशन पर उन्हें पकडऩे के लिए पुलिस खड़ी थी। पर वे आउटर के पास ही उतर कर नगर में आ गए। वे कुछ दिन तक आनंद भवन में रहे। यहीं से वे साइक्लोस्टाइल मशीन पर आंदोलन को गति प्रदान करने के लिए पर्चे तैयार करते तथा छापते थे।

पुलिस के आने पर विजय लक्ष्मी ने उन्हें बचाया
एक बार पुलिस आनंद भवन में तलाशी के लिए आई। वहां विजयलक्ष्मी पंडित ने उस मौके पर बड़ी कुशलता से पुलिस वालों को उलझाए रखा। ऐसे में पुलिस लालबहादुर शास्त्री तक नहीं पहुंच पाई। नृपेंद्र सिंह के अनुसार विजयलक्ष्मी पंडित ने अपनी आत्मकथा स्कोप आफ हैप्पीनेस में इस बात का उल्लेख किया है। शास्त्री उसके बाद आनंद भवन से थोड़ी दूर लाउदर रोड स्थित केशवदेव मालवीय के घर में छिपकर आंदोलन के लिए काम करते थे। वे वहां से भूमिगत कार्यकर्ताओं को निर्देश देते तथा उन्हें काम बांटते थे।