कपड़ों और कागज पर कम देर तक जिंदा रहता है कोरोना वायरस, IIT के वैज्ञानिकों के अनुसार जानें-कहां कितना रहता है जिंदा
नई दिल्ली, । आईआईटी मुंबई के वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस से जुड़ी एक बड़ी गुत्थी को सुलझाने में सफलता हासिल की है। उन्होंने इस बात का पता लगाया है कि कोरोना वायरस किस सतह पर अधिक समय तक जिंदा रहता है और किस सतह पर कम। यही नहीं, उन्होंने इस बात का कारण भी बताया है कि कोरोना वायरस के किसी भी सतह पर जिंदा रहने का कारण क्या है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह शोध एक तरफ जहां लोगों को कोरोना के खौफ से राहत दिलाने का काम करेगा। वहीं, वैज्ञानिक आधार पर आया यह निष्कर्ष कई नीतियों को बनाने में प्रभावकारी भी साबित हो सकता है।
आईआईटी मुंबई के प्रोफेसर रजनीश भारद्वाज ने बताया कि शोध में सामने आया है कि पोरस सरफेस (छिद्रयुक्त सतह), जैसे कि पेपर और कपड़ों में वायरस कम समय तक जिंदा रहता है। इन सतह पर वायरस कुछ घंटों तक ही जिंदा रहता है। वहीं, ग्लास, स्टैनलेस स्टील और प्लास्टिक में वायरस क्रमश: चार, सात और सात दिन तक जिंदा रहता है। पेपर पर वायरस तीन घंटे से कम समय तक ही जीवित रहता है। कपड़ों में यह वायरस दो दिन तक जीवित रहता है। रजनीश भारद्वाज ने बताया कि ड्रॉपलेट तो जल्दी सूख जाती है, पर उसमें एक थिन फिल्म (पानी की हल्की परत) जीवित रहती है। यह पानी की परत जल्दी सूखती नहीं है, जिससे वायरस के जीवित रहने की संभावना रहती है। यह थिन फिल्म आंखों से दिखाई नहीं देती है। यह एक रहस्य की तरह का मामला था, जहां ये दिख रहा था कि ड्रॉपलेट कुछ मिनट या सेकेंडों में सूख जाती है, पर वायरस जीवित रहता है। ऐसे में पानी की हल्की परत ने इस मामले को सुलझाया है। इसके लिए हमने कंप्यूटर सिम्युलेशन का प्रयोग किया।
आईआईटी मुंबई के प्रोफेसर रजनीश भारद्वाज ने बताया कि शोध में सामने आया है कि पोरस सरफेस (छिद्रयुक्त सतह) जैसे कि पेपर और कपड़ों में वायरस कम समय तक जिंदा रहता है। ग्लास स्टैनलेस स्टील और प्लास्टिक में वायरस क्रमश चार सात और सात दिन तक जिंदा रहता है।
आईआईटी मुंबई के प्रोफेसर रजनीश भारद्वाज ने कहा कि पोरस सरफेस जैसे कि पेपर, कपड़ों में वायरस के जल्दी खत्म होने की वजह ड्रॉपलैट फैल जाती है। इसकी वजह से इसका वाष्पीकरण तेजी से होता है। वहीं ग्लास, स्टैनलैस स्टील आदि में वाष्पीकरण देर से होता है।
आईआईटी बॉम्बे के प्रोफेसर रजनीश भारद्वाज ने बताया कि हमने रिसर्च नैनोमीटर वाली लिक्विड लेयर पर की है। यह सतह पर खास तरह के फोर्स से चिपकती है, इसलिए कोरोना इस सतह पर घंटों जीवित रहता है। उनके अनुसार, पतली पर्त वाला मॉडल बताता है कि किसी भी सतह पर पतली पर्त का मौजूद होना और इसका सूखना तय करता है कि इस पर वायरस कितनी देर तक रहेगा।
-ग्लास, लैमिनेट वुड को पोरस मैटीरियल जैसे, कपड़ा या पेपर से कवर करने से वायरस की सतह पर ट्रांसमिशन होने का खतरा कम हो जाता है।
-कार्यालय और अस्पतालों में फर्नीचर और अन्य सामान के प्रयोग में इस बात को ध्यान में रखकर काम किया जा सकता है।
-पार्क, शॉपिंग मॉल, रेस्तरां, रेलवे और एयरपोर्ट में भी सामान के इस्तेमाल में इस बात को जेहन में रखकर कार्य किया जा सकता है कि किस मैटीरियल में वायरस कितने समय तक जीवित रहता है।