हिमालय क्षेत्र में बढ़े टूटे और लटके हुए ग्लेशियर, तबाह कर सकते हैं नदी किनारे बसे गांव और शहर

ग्लोबल वार्मिंग के चलते अपना सपोर्ट खो रहे हैं लाखों टन वजनी बर्फ के पहाड़ स्नो एवलांच स्टडी एंड एस्टेब्लिशमेंट की ऑब्जर्वेशन में हुआ खुलासा
हिमाचल, लद्दाख, अरुणाचल, सिक्किम और उत्त्तराखण्ड में सबसे ज्यादा तबाही का खतरा
विस्तार हिमालयन क्षेत्र में पड़ने वाले ग्लेशियर कमजोर हो रहे हैं। इनमें से ज्यादातर ग्लेशियर फ्रैक्चर्ड हैं यानी उनमें ठोस बर्फ की अधिकता का प्रतिशत कम हो रहा है। दूसरी तरफ ऐसे ग्लेशियर भी हैं जिसमें बीच-बीच में बर्फ का घनत्व कम हो चुका है। ऐसी स्थिति में ये ग्लेशियर अपने सपोर्ट को खो रहे हैं और हैंगिंग ग्लेशियर (लटके) के तौर पर खड़े हैं। ऐसे ग्लेशियर कभी भी भारी तबाही मचा सकते हैं। हिमालयन रीजन में बर्फ पर नजर रखने वाली एजेंसी “स्नो एवलांच स्टडी एंड एस्टेब्लिशमेंट” की ऑब्जर्वेशन में ऐसी बातें निकल कर सामने आई हैं।
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स्नो एवलांच स्टडी एंड एस्टेब्लिशमेंट के पूर्व निदेशक डॉ अश्वघोष गंजू कहते हैं कि हिमालयन रीजन के ग्लेशियर लाखों टन वजनी बर्फ का भार नहीं झेल पा रहे हैं। इसकी वजह बताते हुए डॉक्टर गंजू कहते हैं कि या तो ज्यादातर ग्लेशियर फ्रेक्चर्ड हैं या फिर हैंगिंग पोजीशन में आ चुके हैं। इसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन है। बर्फ पर नजर रखने वाली टीम ने पाया कि ज्यादा तापमान के चलते ग्लेशियर की बर्फ बीच-बीच से पिघल रही है। यही एक प्रमुख कारण है कि ग्लेशियर टूट रहे हैं और लटक भी रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है ऐसे ग्लेशियर बेहद खतरनाक होते हैं।
तबाह हो जाएंगे शहर और गांव
लद्दाख इलाके में पिघलते ग्लेशियरों पर काम करने वाले नॉर्फे सोनम मानते हैं कि हैं ऐसे टूटे और लटके हुए ग्लेशियर जब कभी तबाही मचाएंगे तो ना सिर्फ पहाड़ी इलाकों बल्कि मैदानी इलाकों में रहने वाली बड़ी आबादी बुरी तरह प्रभावित होगी। क्योंकि कमजोर हो चुके ग्लेशियर अपने ऊपर पड़ने वाली बर्फ का बोझ नहीं सहेंगे और लटकने एवं टूटने की वजह से यह पूरी तरह से नदियों में जाकर बहुत तेज वेग के साथ समा जाएंगे। हजारों लाखों टन के ग्लेशियर जब अपने तीव्र वेग से नीचे जाएंगे, तो ये नदियां रास्ता बदल देंगी।
1990 से ज्यादा कमजोर हो रहे ग्लेशियर
सन 1990 से हिमालयन रीजन के ग्लेशियरों का कमजोर होना लगातार जारी है। विशेषज्ञों ने अपने शोध में पाया कि इन ग्लेशियरों के कमजोर होने से ही मैदानी इलाकों में ज्यादातर तबाही आ रही है। शोधकर्ताओं के मुताबिक 1975 से हिमालय के इलाकों में मौजूद ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने की भनक लगने लगी थी। पर्यावरणविद सुपर्णो कहते हैं अगर ग्लेशियर ऐसे ही कमजोर होते रहे तो एक दिन बहुत बड़ा खतरा बन जाएंगे। इसलिए बहुत जरूरी है कि हम सबको मिलकर ना सिर्फ अपने ग्लेशियरों को बचाना है बल्कि बढ़ते हुए तापमान को रोकने के लिए जो मानवीय प्रयास किए जाने चाहिए वह हर संभव तरीके से किए जाएं। इसके लिए सभी सरकारों को आगे आना ही होगा। क्योंकि प्रकृति से छेड़खानी बहुत महंगी पड़ेगी।

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