लोगों को अन-सोशल बनाने में अहम भूमिका निभा रहा इंटरनेट मीडिया
बड़ी मात्र में आपत्तिजनक तस्वीरें और अन्य सामग्री इंटरनेट मीडिया पर जारी हो रही है
इंटरनेट मीडिया (Internet media) लोगों को अन-सोशल बनाने में अपनी अहम भूमिका निभा रहा है। सरकार इसके बीच की कोई ऐसी राह तलाशे कि इंटरनेट मीडिया पर प्रतिबंध लगाए बिना ही उसकी सामग्री में सुधार संभव हो सके।
नई दिल्ली। इसमें कोई संदेह नहीं कि फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम जैसे इंटरनेट मीडिया के तमाम मंचों ने हमारी अभिव्यक्ति को नए आयाम दिए हैं। नि:संदेह इनके कई फायदे हैं, लेकिन इस तथ्य को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता कि इस तकनीक का फायदा उठाते हुए कुछ अराजक तत्वों ने भड़काऊ सामग्री डालकर देश की एकता-अखंडता पर चोट करने की कोशिश भी की है और वे निरंतर ऐसा कर रहे हैं।
इंटरनेट मीडिया के इस्तेमाल पर कई लोगों का कहना है कि लोग अपने फायदे के हिसाब से इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। सच यह भी है कि इस पर भड़काऊ सामग्री लोगों को विचलित कर रही है। यह इंटरनेट मीडिया का ही नतीजा है कि लॉकडाउन के दौर में कई तरह की अफवाहें फैलते देर नहीं लगती थीं। जब सभी ट्रेनें बंद थीं और केवल श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रही थीं, तब कई बार महानगरों के रेलवे स्टेशनों से किसी अमुक गंतव्य के लिए ट्रेनें चलाए जाने की जानकारी इंटरनेट मीडिया पर वायरल होने पर स्टेशनों के आसपास यात्रियों की भीड़ एकत्रित हो जाती थी।
कई बार तो इंटरनेट मीडिया के जरिये ऐसी भड़काऊ सामग्री प्रसारित की जाती है जिससे देश की एकता और अखंडता को खतरा प्रतीत होता है। कई बार ऐसी सामग्री लोगों को उन्मादी बनाने का काम भी करती है। ऐसी सामग्री को समय रहते इंटरनेट मीडिया से हटाया जाना चाहिए। वहीं दूसरी तरफ कुछ लोगों का मानना है कि इंटरनेट मीडिया पर नियंत्रण लोगों की अभिव्यक्ति के अधिकारों के साथ खिलवाड़ है। उनका मानना है कि यह वही माध्यम है, जिसने मिस्न और लीबिया जैसे तमाम देशों में अराजकता और कुशासन के खिलाफ लोगों को एकजुट किया और वर्षो की तनाशाही या अधिनायकवाद शासन प्रणाली को उखाड़ फेंकने में अहम भूमिका निभाई।
यहां तक कि भारत में भी यह इंटरनेट मीडिया ही था जिसने अन्ना हजारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन खड़ा किया। इसलिए सरकार को अपनी खुफिया एजेंसियों की नाकामी का ठीकरा इंटरनेट मीडिया पर नहीं फोड़ना चाहिए। यदि इन पर आपत्तिजनक सामग्री आ रही है तो सरकार को ऐसा तरीका तलाशना चाहिए, जिससे लोगों के अधिकारों को प्रभावित किए बिना इसकी सामग्री की गुणवत्ता सुधर सके।