71 सालों में एबीवीपी कैसे बना दुनिया का सबसे बड़ा छात्र संगठन?

विशेष संकलन (चेतन वशिष्ठ):आज ही के दिन छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना हुई थी. एबीवीपी ‘आजादी के बाद एक मजबूत राष्ट्र के निर्माण और अपनी संस्कृति को बचाए और बनाए रखने के लिए पूरे देश ने एक विकसित और मॉर्डन देश का सपना देखा. इसमें विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले युवाओं की समुचित भागीदारी के लिए 9 जुलाई 1949 को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना की गई.

हालांकि कहा जाता है कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना 1948 में हुई थी. इसके पीछे आरएसएस एक्टिविस्ट बलराज मधोक का दिमाग था. लेकिन इसका औपचारिक रजिस्ट्रेशन 9 जुलाई 1949 को हुआ. इस संगठन का मकसद देश के विश्वविद्यालयों में पनप रही वामपंथी विचारधारा की काट तैयार करना था. बॉम्बे यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर यशवंतराव केलकर इसके मुख्य ऑर्गेनाइजर बने. केलकर को ही इस संगठन को खड़ा करने के पीछे का मुख्य चेहरा बताया जाता है.

 

जेपी आंदोलन और आपातकाल ने एबीवीपी को मजबूत किया
वामपंथी विचारधारा से उलट दक्षिणपंथी विचारधारा का प्रचार-प्रसार इसका मुख्य मकसद रहा. 1970 के जेपी आंदोलन में एबीवीपी ने खुलकर हिस्सा लिया. गुजरात और बिहार में इसके छात्रों के आंदोलन ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया, जिसने इस संगठन को फलने फूलने में मदद की. नब्बे के दशक में मंडल आंदोलन में भी इसके छात्रों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया. अयोध्या में मंदिर निर्माण को लेकर चले कैंपेन में इसके छात्रों ने लोगों को मोबालाइज करने में योगदान दिया.

12 महीने छात्रों के बीच सक्रिय रहती है अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद लगातार छात्रों से जुड़े मुद्दों को लेकर शासन प्रशासन विद्यालय महाविद्यालय विश्वविद्यालय प्रबंधन के समक्ष अपनी बातों को मजबूती के साथ रखता है और जरूरत पड़ने पर सड़कों पर भी उतर कर अपना विरोध दर्ज करवाता है जैसे कि यूजीसी के फेलोशिप बढ़ाने का सवाल हो या बिहार में छात्रों और युवाओं के उचित शिक्षक चयन प्रक्रिया का विषय हो या जेएनयू में फीस वृद्धि का विषय हो सभी मुद्दों को प्रमुखता के साथ उठाती है इसके साथ ही विद्यार्थी परिषद 9 जुलाई को स्थापना दिवस के अवसर पर पूरे 1 हफ्ते वृक्षारोपण गरीब और जरूरतमंद छात्रों के लिए विशेष पठन-पाठन का सुविधा उपलब्ध करवाती है वहीं दिसंबर महीने में सामाजिक समता दिवस के रूप में मनाती है और तब विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता अपने आसपास के क्षेत्रों में जाकर जरूरतमंद लोगों से और आम लोगों से सीधा संवाद करते हैं राष्ट्रीय युवा दिवस जनवरी महीने में जब एबीवीपी के कार्यकर्ता मनाते हैं तब युवाओं के बीच जाकर धूम्रपान से बचने के लिए प्रचार प्रसार करते हैं साथ ही स्वामी विवेकानंद के विचारों को उनके संदेश को आम लोगों के बीच पहुंचाने का कार्य करते हैं विगत कुछ वर्षों से मिशन साहसी कार्यक्रम का आयोजन करवाया जाता है जिसके माध्यम से पूरे देश में छात्राओं को आत्मरक्षा का प्रशिक्षण दिया जाता है इस तरह के कई और भी कार्यक्रम नियमित रूप से आयोजित करवाया जाता है जिसका लक्ष्य होता है छात्रों और युवाओं का सर्वांगीण विकास करना।

केंद्र में जब बनी बीजेपी की सरकार में बढ़ी सदस्यों की संख्या
1974 में देशभर के 790 कॉलेज कैंपसों में एबीवीपी के 1 लाख 60 हजार सदस्य थे. धीरे-धीरे इस संगठन ने देश के कई यूनिवर्सिटी के छात्र संगठनों पर अपना कब्जा जमा लिया. 1983 के दिल्ली यूनिवर्सिटी के चुनाव में एबीवीपी ने पहली बार वहां परचम लहराया. नब्बे के दशक आते-आते एबीवीपी के 1100 ब्रांच बन चुके थे और देशभर में इसके करीब ढाई लाख सदस्य थे.
2014 में केंद्र में एनडीए की सरकार बनने के बाद एबीवीपी ने अपने विस्तार की बड़ी तैयारी की. संघ समर्थित विचारधारा को कॉलेज कैंपसों में प्रचार प्रसार के लिए ऐसा करना जरूरी भी था. कॉलेज कैंपसों में वामपंथी विचारधारा को सीमित करने के लिए एबीवीपी को आगे किया गया. एबीवीपी को संघ का मार्गदर्शन प्राप्त है. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी एबीवीपी ने अपनी सदस्य संख्या बढ़ाई थी.
दुनिया का सबसे बड़ा छात्र संगठन है एबीवीपी
2003 में जहां एबीवीपी की सदस्य संख्या 11 लाख थी, वो 2017 में बढ़कर 32 लाख हो गई. आज इसे दुनिया का सबसे बड़ा छात्र संगठन माना जाता है. राजनीतिक वजहों से बीजेपी ने दक्षिणपंथी विचारधारा वाले कुछ मुद्दों को किनारे रखा लेकिन एबीवीपी ने हर मुद्दे पर जोरदार और असरदार तरीके से अपनी बात रखी और किसी मसले पर उन्होंने खामोशी नहीं ओढ़ी. जेपी मूवमेंट से लेकर आपातकाल के विरोध में इसके छात्रों ने जोरदार तरीके से अपनी आवाज बुलंद की. राष्ट्रवाद से लेकर कश्मीर मसले पर इनकी अपनी स्पष्ट विचारधारा है, जिससे ये पीछे हटने को तैयार नहीं होते.एबीवीपी से जुड़े छात्र प्रदर्शन करते हुए

2017 एबीवीपी के लिए अच्छा नहीं रहा. एक के बाद कई विश्वविद्यालयों के छात्र संगठन के चुनाव में इन्हें हार मिली. जेएनयू, दिल्ली यूनिवर्सिटी, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी, गुजरात यूनिवर्सिटी, गुवाहाटी यूनिवर्सिटी के साथ वाराणसी के महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में भी एबीवीपी को हार का मुंह देखना पड़ा. प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में एबीवीपी की हार बीजेपी के लिए बड़ी चोट थी.


अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद खुद बीजेपी से अलग है. एबीवीपी के छात्र नेताओं ने बीजेपी में बड़े-बड़े पद संभाले हैं और वर्तमान में भी कई आम पदों पर एबीवीपी के पूर्व कार्यकर्ता हैं। अरुण जेटली, विजय गोयल ,जेपी नड्डा ,दीपक प्रकाश रविशंकर प्रसाद ,अश्विनी चौबे, सुशील मोदी ,नितिन गडकरी आदि ने एबीवीपी की छात्र राजनीति से ही शुरुआत की और बाद में बीजेपी के बड़े ओहदों पर काबिज हुए.

विशेष संकलनकर्ता:

(चेतन वशिष्ठ भाजयुमो नेता व पूर्व प्रांत संयोजक मेरठ प्रांत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद )

 

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