आपातकाल: लोकतंत्र सेनानियों में 80% से अधिक संघ के कार्यकर्ता थे – श्री रामलाल
नोएडा। प्रेरणा मीडिया द्वारा आपातकाल पर आयोजित तीन दिवसीय शृंखला के दूसरे दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह-संपर्क प्रमुख श्री रामलाल ने अपने उद्बोधन में बताया किस प्रकार आपातकाल के संकट काल में संघ ने आगे बढ़कर न केवल लोकतंत्र को बचाने के लिए सभी विपक्षी दलों को एकजुट किया बल्कि आंदोलन को मजबूती देने के लिए बड़ी संख्या में संघ के कार्यकर्ताओं ने संघर्ष किया और गिरफ्तार हुए।
उन्होंने बताया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी सत्ता जाने के भय के चलते अचानक लोकतंत्र का गला घोट आपातकाल लगा दिया।
“यह एक ऐसी अंधेरी रात थी जिसका सूर्योदय नहीं दिख रहा था। प्रतिवर्ष इस घटना का स्मरण करना आवश्यक है ताकि भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति न हो सके। आपातकाल सभी प्रकार की अराजकता और अत्याचारों से परे था। रातों रात मीडिया के मुंह बंद कर दिए गए और प्रचार-प्रसार के सभी संसार संसाधनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया,” श्री रामलाल ने कहा।
25 जून की रात को ही सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। चारों तरफ भय का माहौल था। लेकिन संघ में सिखाया जाता है कि भय के माहौल में ही नेतृत्व की परीक्षा होती है।
उस समय फिरोजाबाद में संघ का शिविर चल रहा था जिसमें संघ के सभी वरिष्ठ पदाधिकारी उपस्थित थे। वहीं से संघ के पदाधिकारियों ने योजना बनानी आरंभ कर दी और लोकतंत्र की रक्षा के लिए आगे आने का संकल्प लिया गया।
उन्होंने बताया कि यह निश्चित था कि सरसंघचालक बालासाहेब देवरस जी को गिरफ्तार कर लिया जाएगा। बावजूद इसके वह फिरोजाबाद से नागपुर जाने के लिए ट्रेन में बैठे और जैसे ही नागपुर उतरे उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन अपने गिरफ्तार होने से पहले ही वह दायित्वों का निर्धारण कर चुके थे। इस आंदोलन की लीडरशिप तैयार हो चुकी थी।
संघ के प्रमुख पदाधिकारियों के गिरफ्तार होने के बावजूद भी संघ का कार्य निरंतर चलता रहा जिससे पुलिस और प्रशासन परेशान हो उठा। पुलिस यह मान कर चल रही थी कि जब संघ के सभी पदाधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा तो किसी प्रकार की गतिविधियां नहीं होगी लेकिन ऐसा नहीं हो सका। स्वयंसेवकों ने बड़ी तेजी से स्थिति परिस्थिति के अनुरूप अपने आप को ढाल लिया और हद तो तब हो गई जब पुलिस थानों के सामने ही पोस्टर चिपका दिए जाते थे।
“मैं भी भूमिगत आंदोलन में सक्रिय रहा और लगभग 1 वर्ष बाद संघ की एक बैठक में जाते समय मुझे गिरफ्तार कर लिया गया। उस समय केवल कार्यकर्ता ही नहीं बल्कि मातृशक्ति भी आगे आई और पूरी निडरता के साथ महिलाओं ने संघ के भूमिगत आंदोलन में बढ़-चढ़कर योगदान किया। जब संघ के कार्यकर्ता जेल पहुंचे तो उन्होंने जो लोग को भी एक प्रकार से प्रशिक्षण शिविर बना दिया। संघ के कार्यकर्ता पूरी निडरता के साथ कार्य करते रहे और 15 अगस्त पर ध्वजारोहण के समय जब अधिकारी झंडा फहराते थे तो झंडे में बंधे फूलों के साथ संदेशों के पर्चे भी गिरते थे। मेरठ में ऐसा कई स्थानों पर हुआ।“
संघ के आह्वान पर तरुण और युवाओं ने इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर भागीदारी की अपना कैरियर दांव पर लगाकर संघर्ष किया ऐसे न जाने कितने युवा थे जिनकी पढ़ाई बीच में छूट गई और कई का कैरियर खराब हो गया लेकिन वे इस आंदोलन से नहीं डिगे। अंततः वह दिन आया जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं का संघर्ष फलीभूत हुआ और आपातकाल हटा लिया गया।
हालांकि आपातकाल के हटते ही राजनैतिक बंदियों को तुरंत छोड़ दिया गया लेकिन संघ के कार्यकर्ताओं को कई महीनों बाद ही जेल से मुक्ति मिल सकी।
लोकतंत्र सेनानियों को बाद में आई सरकारों ने पुरस्कृत और सम्मानित करने के उद्देश्य से उन्हें ताम्रपत्र दिए और उन्हें पेंशन भी दी गई परंतु संघ ने यह आंदोलन किसी परितोष के लिए नहीं बल्कि राष्ट्र और लोकतंत्र को बचाने के लिए किया था। इसलिए संघ के कार्यकर्ताओं ने इस प्रकार के पत्र और पेंशन लेने से साफ मना कर दिया। जयप्रकाश नारायण ने सार्वजनिक रूप से इस बात को कहा था कि अगर संघ न होता तो लोकतंत्र की विजय कभी न हो पाती।
कार्यक्रम की अध्यक्षता डा. अखिलेश मिश्र और संचालन डा. प्रियंका सिंह ने किया। बृहस्पतिवार को समापन सत्र को पाञ्चजन्य के सम्पादक हितेष शंकर सम्बोधित करेंगे।