पत्रकार हत्याकांड में राम रहीम को मिली कठोर सजा, पढ़ें पूरी खबर
हरियाणा के सिरसा में घटित पत्रकार हत्याकाण्ड में सीबीआई ने सजा का एलान करते हुए गुरमीत राम रहीम को उम्रकैद की सजा सुना दी है. मरने तक राम रहीम जेल में हीं रहेगा. राम रहीम के तीन सहयोगियों को भी उम्रकैद की सजा सुनाई गई है. चारों दोषियों पर 50-50 हाजार रूपये का जुर्माना भी लगाया गया है. इस मामले में पंचकुला की सीबीआई कोर्ट ने बीते 11 जनवरी को गुरमीत राम रहीम, कुलदीप सिंह, निर्मल सिंह और किशन लाल को दोषी करार दिया था. राम रहीम पहले से ही दो रेप केस में जेल में 10-10 साल की सजा काट रहा है. 20 साल की सजा काटने के बाद उम्रकैद की सजा चलेगी.
कोर्ट ने राम रहीम और किशन लाल को आईपीसी की धारा 120बी, 302 का दोषी ठहराया। वहीं, कुलदीप और निर्मल को 120बी, 302 और आर्म्स एक्ट का दोषी ठहराया है। फैसले के बाद पत्रकार छत्रपति के बेटे अंशुल ने राम रहीम को फांसी की सजा दिए जाने की मांग की थी। आज सीबीआई की विशेष अदालत के न्यायधीश जसदेव सिंह ने विडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के जरिये उम्र कैद की सजा का एलान किया.
इससे पहले बचाव पक्ष और सीबीआइ के वकीलों के बीच सजा को लेकर बहस हुई। सीबीआइ के वकील ने गुरमीत राम रहीम के लिए फांसी की सजा मांगी। बचाव पक्ष के वकील ने रहम की गुहार लगाई। इस दौरान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से पेश हो रहा गुरमीत राम रहीम हाथ जोड़े खड़ा रहा। सुनवाई के दौरान रामचंद्र छत्रपति के परिवार ने मुआवजा देने की मांग उठाई।
सीबीआइ के वकील ने विशेष जज के सामने अपनी दलील में कहा कि राम रहीम को फांसी की सजा दी जाए। दूसरी ओर, बचाव पक्ष ने कम से कम सजा देने के लिए गुहार लगाई। पत्रकार रामचंद्र छत्रपति हत्या मामले में सीबीआई कोर्ट में सुनवाई में दोनों पक्षों की सज़ा पर बहस हुई पूरी।वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान स्क्रीन पर चारों दोषियों को लाकर सुनवाई हुई।
क्या है रामरहीम का पत्रकार हत्याकांड माम्मला
2002 में पत्रकार छत्रपति के समाचार पत्र ‘पूरा सच’ ने एक पत्र प्रकाशित किया था जिसमें यह बताया गया था कि डेरा मुख्यालय में राम रहीम किस प्रकार महिलाओं का यौन उत्पीड़न कर रहे हैं। इसके बाद छत्रपति को अक्टूबर 2002 में गोली मार दी गई थी। गंभीर रूप से घायल होने के कारण पत्रकार की बाद में मौत हो गई थी।
आरोप लगा था कि गोली डेरा अनुयायियों ने मारी गोली मार दी थी। 2002 के इस मामले में गुरमीत राम रहीम को मुख्य षड़यंत्रकर्ता नामित किया गया है। 2003 में इस संबंध में मामला दर्ज किया गया था। इस मामले को 2006 में सीबीआई को सौंप दिया गया था। जुलाई 2007 को सीबीआई ने चार्जशीट पेश की और साल 2014 में सबूतों पर कोर्ट में बहस शुरू हुई, फिर ऐसा करते-करते ये केस इस अंजाम तक पहुंचा है।