समलैंगिकता और निजता का अधिकार , क्या कहता है कानून
निजता के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट के आर्डर का हवाला देते हुए अरविन्द दातर, सीनियर अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट ने नाज संस्था के लिए जैसे खुशियों का अम्बार ला दिया हो| चीफ जस्टिस ने यह कह कर ‘कि कोई व्यक्ति अपनी निजी पसंद व चयन के लिए डर के साये में नहीं जीना चाहिए’, नाज संस्था से जुड़े एक खास श्रेणी(LGBT) के लोगो के लिए कानून सम्मत नई पहचान बनाने के दरवाजे खोले है| सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर 2013 को होमो सेक्सुअल्टी के मामले में दिए गए अपने ऐतिहासिक जजमेंट में समलैंगिगता मामले में उम्रकैद की सजा के प्रावधान के कानून को बहाल रखने का फैसला किया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया था जिसमें दो बालिगो के आपसी सहमति से समलैंगिक संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर माना गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा जब तक धारा 377 रहेगी तब तक समलैंगिक संबंध को वैध नहीं ठहराया जा सकता।
चार साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया, और समलैंगिगता को अपराध माना
सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर 2013 को होमो सेक्सुअल्टी के मामले में दिए गए अपने ऐतिहासिक जजमेंट में समलैंगिगता मामले में उम्रकैद की सजा के प्रावधान के कानून को बहाल रखने का फैसला किया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया था जिसमें दो बालिगो के आपसी सहमति से समलैंगिक संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर माना गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा जबतक धारा 377 रहेगी तब तक समलैंगिक संबंध को वैध नहीं ठहराया जा सकता।
आई पी सी की धारा 377
आईपीसी की धारा 377 के तहत 2 लोग आपसी सहमति या असहमति से से अननैचुरल संबंध बनाते है, और दोषी करार दिए जाते हैं तो उनको 10 साल की सजा से लेकर उम्रकैद की सजा हो सकती है। यह अपराध संजेय अपराध की श्रेणी में आता है और गैरजमानती है।
किसने दी थी धारा 377 को चुनौती
सेक्स वर्करों के लिए काम करने वाली संस्था नाज फाउंडेशन ने हाईकोर्ट में यह कहते हुए इसकी संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाया था कि अगर दो एडल्ट आपसी सहमति से एकांत में सेक्सुअल संबंध बनाते है तो उसे धारा 377 के प्रावधान से बाहर किया जाना चाहिए। 2 जुलाई 2009 को दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला आया था|2 जुलाई 2009 को नाज फाउंडेशन की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि दो व्यस्क आपसी सहमति से एकातं में समलैंगिक संबंध बनाते है तो वह आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध नहीं माना जाएगा| कोर्ट ने सभी नागरिकों के समानता के अधिकारों की बात की थी। अब इस मामले कि सुनवाई एक बड़ी सवैधानिक बेंच करेगी|
चार साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया, और समलैंगिगता को अपराध माना|
आईपीसी की धारा 377 के तहत 2 लोग आपसी सहमति या असहमति से से अननैचुरल संबंध बनाते है और दोषी करार दिए जाते हैं तो उनको 10 साल की सजा से लेकर उम्रकैद की सजा हो सकती है। यह अपराध संजेय अपराध की श्रेणी में आता है और गैरजमानती है।
यह देखना बाकी है कि आखिरी फैसला किस प्रकार से आता है| चीफ जस्टिस का अवलोकन ही काफी वजन दार होता है और उच्तम न्यायालय के सच विचार का पता तो चलता ही है|
लेखक परिचय :
लेफ्टिनेंट कर्नल अतुल त्यागी दिल्ली हाई कोर्ट के अधिवक्ता है। श्री त्यागी ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी, यमुना अथॉरिटी, रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन, एजुकेशन इंस्टिट्यूशंस और कहिए जैसे संस्थानों से जुड़े हुए हैं। लेफ्टिनेंट कर्नल अतुल त्यागी सामाजिक व समसायिक विषयों पर अपने लेख के जरिये विचार व्यक्त करते रहते हैं। फिलहाल वो एक लॉ फर्म FAIR LAW PRACTITIONERS का संचालन ग्रेटर नोएडा में कर रहे हैं .